सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Akshaya TritiyaBy social worker Vanita Kasani PunjabAn important day and festival of Indian cultureRead in another languagedownloadTake careEditbal vanita Mahila AshramAkshay III

अक्षय तृतीया

भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण दिवस एवं पर्व
   अक्षय तृतीया या आखा तीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं। पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है।[1] इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है।[2] वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीया शुभ होती है, किन्तु वैशाख माह की तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में मानी गई है।
अक्षय तृतीया
Coins lot.jpg
अक्षय तृतीया
आधिकारिक नामअक्षय तृतीया
अन्य नामआखा तीज, अक्षय तीज
अनुयायीहिन्दूजैन
प्रकारHindu
उद्देश्यधर्म, पुण्य, धन और
कर्म आदि अक्षय फल
उत्सवव्रत, दान, पूजन
तिथिवैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि
समान पर्व

महत्व

अक्षय तृतीया का सर्वसिद्ध मुहूर्त के रूप में भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों की खरीददारी या घर, भूखण्ड, वाहन आदि की खरीददारी से सम्बन्धित कार्य किए जा सकते हैं।[3] नवीन वस्त्र, आभूषण आदि धारण करने और नई संस्था, समाज आदि की स्थापना या उदघाटन का कार्य श्रेष्ठ माना जाता है। पुराणों में लिखा है कि इस दिन पितरों को किया गया तर्पण तथा पिन्डदान अथवा किसी और प्रकार का दान, अक्षय फल प्रदान करता है। इस दिन गंगा स्नान करने से तथा भगवत पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यहाँ तक कि इस दिन किया गया जप, तप, हवन, स्वाध्याय और दान भी अक्षय हो जाता है। यह तिथि यदि सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र के दिन आए तो इस दिन किए गए दान, जप-तप का फल बहुत अधिक बढ़ जाता हैं। इसके अतिरिक्त यदि यह तृतीया मध्याह्न से पहले शुरू होकर प्रदोष काल तक रहे तो बहुत ही श्रेष्ठ मानी जाती है। यह भी माना जाता है कि आज के दिन मनुष्य अपने या स्वजनों द्वारा किए गए जाने-अनजाने अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करे तो भगवान उसके अपराधों को क्षमा कर देते हैं और उसे सदगुण प्रदान करते हैं, अतः आज के दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में सदा के लिए अर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान माँगने की परम्परा भी है।

हिन्दू धर्म में महत्व

अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर समुद्र या गंगा स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की शान्त चित्त होकर विधि विधान से पूजा करने का प्रावधान है। नैवेद्य में जौ या गेहूँ का सत्तू, ककड़ी और चने की दाल अर्पित किया जाता है। तत्पश्चात फल, फूल, बरतन, तथा वस्त्र आदि दान करके ब्राह्मणों को दक्षिणा दी जाती है।[4] ब्राह्मण को भोजन करवाना कल्याणकारी समझा जाता है। मान्यता है कि इस दिन सत्तू अवश्य खाना चाहिए तथा नए वस्त्र और आभूषण पहनने चाहिए। गौ, भूमि, स्वर्ण पात्र इत्यादि का दान भी इस दिन किया जाता है। यह तिथि वसन्त ऋतु के अन्त और ग्रीष्म ऋतु का प्रारम्भ का दिन भी है इसलिए अक्षय तृतीया के दिन जल से भरे घडे, कुल्हड, सकोरे, पंखे, खडाऊँ, छाता, चावल, नमक, घी, खरबूजा, ककड़ी, चीनी, साग, इमली, सत्तू आदि गरमी में लाभकारी वस्तुओं का दान पुण्यकारी माना गया है।[2][5][3] इस दान के पीछे यह लोक विश्वास है कि इस दिन जिन-जिन वस्तुओं का दान किया जाएगा, वे समस्त वस्तुएँ स्वर्ग या अगले जन्म में प्राप्त होगी। इस दिन लक्ष्मी नारायण की पूजा सफेद कमल अथवा सफेद गुलाब या पीले गुलाब से करना चाहिये।

सर्वत्र शुक्ल पुष्पाणि प्रशस्तानि सदार्चने।

दानकाले च सर्वत्र मन्त्र मेत मुदीरयेत्॥

[6]

अर्थात सभी महीनों की तृतीया में सफेद पुष्प से किया गया पूजन प्रशंसनीय माना गया है।

ऐसी भी मान्यता है कि अक्षय तृतीया पर अपने अच्छे आचरण और सद्गुणों से दूसरों का आशीर्वाद लेना अक्षय रहता है। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा विशेष फलदायी मानी गई है। इस दिन किया गया आचरण और सत्कर्म अक्षय रहता है।[6]

भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है, सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ इसी तिथि से हुआ है।[6] भगवान विष्णु ने नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था।[5] ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव भी इसी दिन हुआ था।[2] इस दिन श्री बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है और श्री लक्ष्मी नारायण के दर्शन किए जाते हैं। प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही पुनः खुलते हैं। वृन्दावन स्थित श्री बाँके बिहारी जी मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं।[5][3] जी.एम. हिंगे के अनुसार तृतीया 41 घटी 21 पल होती है तथा धर्म सिन्धु एवं निर्णय सिन्धु ग्रन्थ के अनुसार अक्षय तृतीया 6 घटी से अधिक होना चाहिए। पद्म पुराण के अनुसा इस तृतीया को अपराह्न व्यापिनी मानना चाहिए।[1] इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था।[2] ऐसी मान्यता है कि इस दिन से प्रारम्भ किए गए कार्य अथवा इस दिन को किए गए दान का कभी भी क्षय नहीं होता। मदनरत्न के अनुसार:

अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं। तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया॥

उद्दिष्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यैः। तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव॥

[5]

बाल वनिता महिला आश्रम

प्रचलित कथाएँ

अक्षय तृतीया की अनेक व्रत कथाएँ प्रचलित हैं। ऐसी ही एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक धर्मदास नामक वैश्य था। उसकी सदाचार, देव और ब्राह्मणों के प्रति काफी श्रद्धा थी। इस व्रत के महात्म्य को सुनने के पश्चात उसने इस पर्व के आने पर गंगा में स्नान करके विधिपूर्वक देवी-देवताओं की पूजा की, व्रत के दिन स्वर्ण, वस्त्र तथा दिव्य वस्तुएँ ब्राह्मणों को दान में दी।[3] अनेक रोगों से ग्रस्त तथा वृद्ध होने के बावजूद भी उसने उपवास करके धर्म-कर्म और दान पुण्य किया। यही वैश्य दूसरे जन्म में कुशावती का राजा बना।[5] कहते हैं कि अक्षय तृतीया के दिन किए गए दान व पूजन के कारण वह बहुत धनी प्रतापी बना। वह इतना धनी और प्रतापी राजा था कि त्रिदेव तक उसके दरबार में अक्षय तृतीया के दिन ब्राह्मण का वेष धारण करके उसके महायज्ञ में शामिल होते थे। अपनी श्रद्धा और भक्ति का उसे कभी घमण्ड नहीं हुआ और महान वैभवशाली होने के बावजूद भी वह धर्म मार्ग से विचलित नहीं हुआ। माना जाता है कि यही राजा आगे चलकर राजा चंद्रगुप्त के रूप में पैदा हुआ।[2][3]

स्कंद पुराण और भविष्य पुराण में उल्लेख है कि वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को रेणुका के गर्भ से भगवान विष्णु ने परशुराम रूप में जन्म लिया। कोंकण और चिप्लून के परशुराम मंदिरों में इस तिथि को परशुराम जयन्ती बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। दक्षिण भारत में परशुराम जयन्ती को विशेष महत्व दिया जाता है। परशुराम जयन्ती होने के कारण इस तिथि में भगवान परशुराम के आविर्भाव की कथा भी सुनी जाती है। इस दिन परशुराम जी की पूजा करके उन्हें अर्घ्य देने का बड़ा माहात्म्य माना गया है। सौभाग्यवती स्त्रियाँ और क्वारी कन्याएँ इस दिन गौरी-पूजा करके मिठाई, फल और भीगे हुए चने बाँटती हैं, गौरी-पार्वती की पूजा करके धातु या मिट्टी के कलश में जल, फल, फूल, तिल, अन्न आदि लेकर दान करती हैं। मान्यता है कि इसी दिन जन्म से ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय भृगुवंशी परशुराम का जन्म हुआ था। एक कथा के अनुसार परशुराम की माता और विश्वामित्र की माता के पूजन के बाद प्रसाद देते समय ऋषि ने प्रसाद बदल कर दे दिया था। जिसके प्रभाव से परशुराम ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय स्वभाव के थे और क्षत्रिय पुत्र होने के बाद भी विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाए। उल्लेख है कि सीता स्वयंवर के समय परशुराम जी अपना धनुष बाण श्री राम को समर्पित कर संन्यासी का जीवन बिताने अन्यत्र चले गए। अपने साथ एक फरसा रखते थे तभी उनका नाम परशुराम पड़ा।

जैन धर्म में अक्षय-तृतीया

तीर्थंकर आदिनाथ को प्रथम आहार देते राजा श्रेयांस (चित्र- अजमेर जैन मन्दिर)

जैन धर्मावलम्बियों का महान धार्मिक पर्व है। इस दिन जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान ने एक वर्ष की पूर्ण तपस्या करने के पश्चात इक्षु (शोरडी-गन्ने) रस से पारायण किया था। जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर श्री आदिनाथ भगवान ने सत्य व अहिंसा का प्रचार करने एवं अपने कर्म बन्धनों को तोड़ने के लिए संसार के भौतिक एवं पारिवारिक सुखों का त्याग कर जैन वैराग्य अंगीकार कर लिया। सत्य और अहिंसा के प्रचार करते-करते आदिनाथ प्रभु हस्तिनापुर गजपुर पधारे जहाँ इनके पौत्र सोमयश का शासन था। प्रभु का आगमन सुनकर सम्पूर्ण नगर दर्शनार्थ उमड़ पड़ा सोमप्रभु के पुत्र राजकुमार श्रेयांस कुमार ने प्रभु को देखकर उसने आदिनाथ को पहचान लिया और तत्काल शुद्ध आहार के रूप में प्रभु को गन्ने का रस दिया, जिससे आदिनाथ ने व्रत का पारायण किया। जैन धर्मावलंबियों का मानना है कि गन्ने के रस को इक्षुरस भी कहते हैं इस कारण यह दिन इक्षु तृतीया एवं अक्षय तृतीया के नाम से विख्यात हो गया।

भगवान श्री आदिनाथ ने लगभग 400 दिवस की तपस्या के पश्चात पारायण किया था। यह लम्बी तपस्या एक वर्ष से अधिक समय की थी अत: जैन धर्म में इसे वर्षीतप से सम्बोधित किया जाता है। आज भी जैन धर्मावलम्बी वर्षीतप की आराधना कर अपने को धन्य समझते हैं, यह तपस्या प्रति वर्ष कार्तिक के कृष्ण पक्ष की अष्टमी से आरम्भ होती है और दूसरे वर्ष वैशाख के शुक्लपक्ष की अक्षय तृतीया के दिन पारायण कर पूर्ण की जाती है। तपस्या आरम्भ करने से पूर्व इस बात का पूर्ण ध्यान रखा जाता है कि प्रति मास की चौदस को उपवास करना आवश्यक होता है। इस प्रकार का वर्षीतप करीबन 13 मास और दस दिन का हो जाता है। उपवास में केवल गर्म पानी का सेवन किया जाता है।

भारत वर्ष में इस प्रकार की वर्षी तपश्चर्या करने वालों की संख्या हज़ारों तक पहुँच जाती है। यह तपस्या धार्मिक दृष्टिकोण से अन्यक्त ही महत्त्वपूर्ण है, वहीं आरोग्य जीवन बिताने के लिए भी उपयोगी है। संयम जीवनयापन करने के लिए इस प्रकार की धार्मिक क्रिया करने से मन को शान्त, विचारों में शुद्धता, धार्मिक प्रवृत्रियों में रुचि और कर्मों को काटने में सहयोग मिलता है। इसी कारण इस अक्षय तृतीया का जैन धर्म में विशेष धार्मिक महत्व समझा जाता है। मन, वचन एवं श्रद्धा से वर्षीतप करने वाले को महान समझा जाता है।

संस्कृति में

इस दिन से शादी-ब्याह करने की शुरुआत हो जाती है। बड़े-बुजुर्ग अपने पुत्र-पुत्रियों के लगन का मांगलिक कार्य आरंभ कर देते हैं। अनेक स्थानों पर छोटे बच्चे भी पूरी रीति-रिवाज के साथ अपने गुड्‌डा-गुड़िया का विवाह रचाते हैं। इस प्रकार गाँवों में बच्चे सामाजिक कार्य व्यवहारों को स्वयं सीखते व आत्मसात करते हैं। कई जगह तो परिवार के साथ-साथ पूरा का पूरा गाँव भी बच्चों के द्वारा रचे गए वैवाहिक कार्यक्रमों में सम्मिलित हो जाता है। इसलिए कहा जा सकता है कि अक्षय तृतीया सामाजिक व सांस्कृतिक शिक्षा का अनूठा त्यौहार है। कृषक समुदाय में इस दिन एकत्रित होकर आने वाले वर्ष के आगमन, कृषि पैदावार आदि के शगुन देखते हैं। ऐसा विश्वास है कि इस दिन जो सगुन कृषकों को मिलते हैं, वे शत-प्रतिशत सत्य होते हैं। राजपूत समुदाय में आने वाला वर्ष सुखमय हो, इसलिए इस दिन शिकार पर जाने की परंपरा है।

विभिन्न प्रान्तों में अक्षय तृतीया

बुन्देलखण्ड में अक्षय तृतीया से प्रारम्भ होकर पूर्णिमा तक बडी धूमधाम से उत्सव मनाया जाता है, जिसमें कुँवारी कन्याएँ अपने भाई, पिता तथा गाँव-घर और कुटुम्ब के लोगों को शगुन बाँटती हैं और गीत गाती हैं। अक्षय तृतीया को राजस्थान में वर्षा के लिए शगुन निकाला जाता है, वर्षा की कामना की जाती है, लड़कियाँ झुण्ड बनाकर घर-घर जाकर शगुन गीत गाती हैं और लड़के पतंग उड़ाते हैं। यहाँ इस दिन सात तरह के अन्नों से पूजा की जाती है। मालवा में नए घड़े के ऊपर खरबूजा और आम के पल्लव रख कर पूजा होती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन कृषि कार्य का आरम्भ किसानों को समृद्धि देता है।

अन्य महत्त्वपूर्ण तिथियाँ

हिन्दू धर्म मे चार तिथियाँ अति श्रेष्ठ मानी गयीं है

सन्दर्भ

  1. ↑   अक्षय तृतीया : दान का महापर्व Archived 2010-05-18 at the Wayback Machine। वेब दुनिया
  2. ↑      शुभ मुहूर्त का दूसरा नाम है अक्षय तृतीया Archived 2009-05-02 at the Wayback Machine। नवभारत टाइम्स। २७ अप्रैल २००९। पं.केवल आनंद जोशी
  3. ↑      अक्षय तृतीया का माहात्म्य एवं कथा Archived 2010-01-20 at the Wayback Machine। वेब दुनिया।
  4.  अक्षय तृतीया पर मिलता है अक्षय फल Archived 2009-12-13 at the Wayback Machine। वेब दुनिया
  5. ↑      अक्षय तृतीया (16 मई) की महिमा निराली Archived 2010-05-16 at the Wayback Machine। हिन्दी लोक। पं.हनुमान मिश्रा
  6. ↑    danik bhaskarअक्षय पुण्यदायिनी अक्षय तृतीया Archived 2010-05-19 at the Wayback Machine। दैनिक भास्कर। प. जयगोविंद शास्त्री। १६ मई २०१०

बाहरी कड़ियाँ

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

राम नाम(ram nam) लेखन की महिमा, नाम लेखन से मन शीघ्र एकाग्र होता है..राम नाम(ram nam) लेखन की महिमा, नाम लेखन से मन शीघ्र एकाग्र होता है.. By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब हरि नाम लेखन की महिमा(hari nam lekhan mahima):-प्रभु से जुड़ने के अनेक माध्यम हमारे सद्ग्रंथो, ऋषि मुनियों एवं संतो द्वारा बताये गये है, उनमे से एक है हरि नाम (ram nam) जप और नाम लेखन |बाल वनिता महिला आश्रमनाम में कोई भेद नही है..‘राम‘,’कृष्ण‘,’शिव‘,’राधे‘ जो नाम आपको प्रिय लगे उसी को पकड़ लो तो बेडा पार हो जायेगा | नाम में भेद करना नाम – अपराध है,यही प्रयास करे की हमारे द्वरा कभी नाम अपराध न बने |कलयुग में केवल नाम ही आधार है ..तुलसीदासजी ने भी रामचरित मानस में कहा है..कलियुग केवल नाम आधारा | सुमीर सुमीर नर उतरही पारा ||सतयुग में तप,ध्यान , त्रेता में यग्य,योग, और द्वापर में जो फल पूजा पाठ और कर्मकांड से मिलता था वाही फल कलियुग में मात्र हरि नाम(ram nam) जप या नाम लेखन से मिलता है |नाम लेखन में मन बहुत जल्दी एकाग्र होता है | नाम जप से नाम लेखन को तीन गुना अधिक श्रेष्ठ माना गया है |क्योकि नाम लेखन से नाम का दर्शन, हाथ से सेवा नेत्रों से दर्शन और मानसिक उच्चारण, ये तीन कम एक साथ होते है |आनंद रामायण में नाम लेखन की महिमा(ram naam lekhan) :-आनंद रामायण में लिखा है सम्पूर्ण प्रकार के मनोरथ की पूर्ति नाम लेखन से हो जाती है |इस पावन साधन से लोकिक कम्नाये भी पूर्ण हो जातीहै और यदि कोई कामना न हो तो भगवन के चरण कमलो में प्रेम की प्राप्ती हो जाती है |महामंत्र जोइ जपत महेसू । कासीं मुकुति हेतु उपदेसू ||महिमा जासु जान गनराऊ। प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ ||अनादि काल से स्वयं महादेव जिस नाम का एक निष्ठ हो निरंतर स्मरण करते हुए जिनकी महिमा का बखान भगवती पार्वती से करते रहें हैं.जिनके सेवार्थ उन्होंने श्री हनुमत रूप में अवतार लिया ऐसे श्री राम का नाम लिखना सुनना कहना भव सागर से तारणहार तो है ही –साथ ही मानव मात्र को समस्त प्रकार के दैविक दैहिक भौतिक सुखों से भी श्रीयुत करने में सर्वथा प्रभावी तथा आत्मोत्थान का सबसे सुगम माध्यम है .महावीर हनुमानजी ने स्वयं राम नाम की महिमा को प्रभु श्री राम से भी बड़ा माना है .राम से बड़ा राम का नाम ..वे कहते हैं –“प्रभो! आपसे तो आपका नाम बहुत ही श्रेष्ठ है,ऐसा मैं निश्चयपूर्वक कहता हूँ। आपने तो त्रेतायुग को तारा है परंतु आपका नाम तो सदा-सर्वदा तीनों भुवनों को तारता ही रहता है।”यह है ज्ञानियों में अग्रगण्य हनुमानजी की भगवन्नाम- निष्ठा !हनुमानजी ने यहाँ दुःख, शोक, चिंता, संताप के सागर इस संसार से तरने के लिए सबसे सरल एवं सबसे सुगम साधन के रूप में भगवन्नाम का, भगवन्नामयुक्त इष्टमंत्र का स्मरण किया है।राम नाम(ram nam) जप और नाम लेखन की महिमा :-एकतः सकला मन्त्रःएकतो ज्ञान कोटयःएकतो राम नाम स्यात तदपि स्यान्नैव सममअर्थात: तराजू के एक पलड़े में सभी महामंत्रों एवं कोटि ज्ञान ध्यानादि साधनों के फलों को रखा जाए और दुसरे पलड़े में केवल राम नाम रख दिया जाए तो भी सब मिलकर राम नाम की तुलना नहीं कर सकते.ये जपन्ति सदा स्नेहान्नाम मांगल्य कारणं श्रीमतो रामचन्द्रस्य क्रिपालोर्मम स्वामिनःतेषामर्थ सदा विप्रः प्रदताहम प्रयत्नतः ददामि वांछित नित्यं सर्वदा सौख्य्मुत्तममअर्थात: जो मानव मेरे स्वामी दयासागर श्री रामचन्द्रजी के मंगलकारी नाम का सदा प्रेमपूर्वक जप करते हैं , उनके लिए मैं सदा यत्नपूर्वक प्रदाता बनकर उनकी अभिलाषा पूरित करते हुए उत्तम सुख देता रहता हूँ.“प्रेम ते प्रगट होहि मैं जाना”श्री रामनाम लेखन से सुमिरन तो होता ही है साथ ही लेखक का अंतर्मन श्री राम के दिव्य प्रेम व तेज से जागृत होने लगता हैAlso read:- भक्तिबाल वनिता महिला आश्रमतो आइये अपने समय को सुव्यवस्थित समायोजित करते हुए इस राम नाम लेखन महायज्ञ में पूर्ण श्रद्धा से सम्मिलित हो अक्षय पुण्य के भागी बनें. मानस पटल पर प्रभु श्री राम की छवि हो पवन पुत्र की दया हो और अंगुलिया की-बोर्ड पर अथवा कलम पकड़े हुए.. राम नाम जप माला में दिव्य मणियाँ स्वतः ही पिरोयीं जाएंगी.राम नाम लेखन व जाप से लाभ:1,25,000 – इस जन्म में अजिॅत पापो का नाश होना शुरू हो जाता है ।2,25,000 -जीवन के पापो का शमन हो जाता है व सभी क्रूर व दुष्ट गृहों का निवारण शुरू हो जाता है5,00,000 -भगवान राम की कृपा से चरणों की भक्ति में वृध्दि होती हैं ।10,00,000 -पूर्व जन्मों के समस्त पापो का क्षय होता हैं ।25,00,000 -जीवन के दुःस्वप्न का नाश होता हैं एवं समस्त ऐश्वर्य भाग व मुक्ति का फल मिलता हैं ।50,00,000 -सभी तरह को पुण्यों एवं यज्ञों का फल मिलता हैं ।75,00,000 -अनेक जन्मों के पापौ का नाश हो जाता हैं तथा भगवान राम की अखण्ड भक्ति मिलती हैं ।1,00,00,000 -अश्वमेघ यज्ञ के द्विगुण रूप में फल मिलता हैं और – सर्वपाप विनिर्मुक्तो विष्णु लोकं स गच्छति ।रामनाम लिखने से एकाग्रता आती और मानसिक परेशानियां दूर होती हैं।नाम जप न बने तो नाम लेखन करो |श्री राधे! जय श्री राम!! जय श्री कृष्ण!!

घरेलू बिजली कनेक्शन कैसे ले पूरी जानकारी By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦घरेलू बिजली कनेक्शन कैसे ले how to apply for domestic electricity connection in hindi : घर में बिजली का उपयोग करने के लिए घरेलु बिजली कनेक्शन लगवाया जाता है। ये जरुरत के अनुसार LT या HT connection हो सकता है। ज्यादातर लोग सिंगल फेज ही घर में इस्तेमाल करते है। लेकिन अधिकांश लोग नहीं जानते है कि घरेलू बिजली कनेक्शन कैसे लिया जाता है, इसके लिए आवेदन कैसे किया जाता है ? इसीलिए हमने यहाँ सरल भाषा में इसकी पूरी जानकारी दे रहे है।घरेलु बिजली कनेक्शन लगवाने के लिए आपको ये जानना जरुरी है कि घरेलु कनेक्शन क्या होते है ? इसके लिए कौन कौन से डॉक्यूमेंट की आवश्यकता पड़ती है और इसके लिए आवेदन कैसे करते है ? क्योंकि बिना इसके जाने आपको कनेक्शन मिलने में परेशानी आएगी। बिजली वितरण कंपनियों ने घरेलु कनेक्शन देने के लिए निर्धारित मापदंड और प्रक्रिया तय किये है। इसे जानना आपके लिए काफी जरुरी है। तो चलिए बिना टाइम गवांयें शुरू करते है।घरेलू-बिजली-कनेक्शनविषय - सूची छुपाएँ घरेलू बिजली कनेक्शन कैसे ले ?घरेलू बिजली कनेक्शन क्या है ?घरेलू बिजली कनेक्शन के लिए क्या क्या डॉक्यूमेंट चाहिए ?घरेलू बिजली कनेक्शन के नियमघरेलू बिजली कनेक्शन के लिए आवेदन कैसे करें ?घरेलू बिजली कनेक्शन के लिए ऑनलाइन अप्लाई कैसे करें ?घरेलू बिजली कनेक्शन कैसे ले ?घरेलु बिजली कनेक्शन (Domestic Connection) लेना काफी आसान है। क्योंकि ये अधिकांश LT कनेक्शन होते है। इसके कारण ज्यादा डॉक्यूमेंट की मांग नहीं किया जाता है। आपको निर्धारित आवेदन फॉर्म को भरकर जमा करना होता है। इसके बाद आपके घर मीटर लग जायेगा। घरेलू बिजली कनेक्शन लगवाने की पूरी प्रक्रिया को हमने नीचे एक एक करके बताया है। आप इसे ध्यान से पढ़ें। चलिए सबसे पहले जानते है कि घरेलू बिजली कनेक्शन क्या है ?घरेलू बिजली कनेक्शन क्या है ?घर में सामान्य उपयोग के लिए जैसे – बल्ब, पंखा, कूलर, एयर कंडीशनर (AC), टीवी, फ्रीज़, घरेलु पानी पम्प आदि के उद्देश्य से उपयोग किये जाने वाले बिजली को घरेलु कनेक्शन कहा जाता है। घरेलु कनेक्शन में व्यावसायिक उपयोग की अनुमति नहीं दिया जाता है। इसमें सिंगल फेज की जरुरत ज्यादा पड़ती है। लेकिन जरुरत के अनुसार 3 फेज का कनेक्शन भी लगवाते है।घरेलू बिजली कनेक्शन के लिए क्या क्या डॉक्यूमेंट चाहिए ?घरेलु बिजली कनेक्शन लगवाने के लिए ज्यादा डॉक्युमेंट की जरुरत नहीं पड़ती है। फिर भी जो चीजें अनिवार्य है उसे आप नीचे लिस्ट में देख सकते है –नई बिजली कनेक्शन के लिए आवेदन फॉर्म लगेगा।एग्रीमेंट की कॉपी लगेगाशपथ पत्र लगेगाजिस जगह कनेक्शन लगता है उसका पेपर लगेगाराशन कार्डआधार कार्डपासपोर्ट साइज फोटोघरेलू बिजली कनेक्शन के नियमघरेलु बिजली कनेक्शन लगवाने के लिए कोई कठोर नियम नहीं बनाये गए है। लेकिन आपको इसके दिशा निर्देश के अनुसार ही कनेक्शन मिलता है। इसे आप नीचे पढ़ सकते है –नया बिजली कनेक्शन बिना मीटर के नहीं दिया जाएगा।बिजली मीटर डिजिटल रहेगा।आवेदक मूल निवासी होना चाहिए।जहाँ कनेक्शन लगवाना है उसका पेपर होना चाहिए।प्रतिमाह बिजली बिल का भुगतान करना होगा।बिजली बिल नहीं पटाने की स्थिति में विभाग कभी भी आपका कनेक्शन काट सकता है।घरेलु कनेक्शन का उपयोग व्यावसायिक कार्य हेतु नहीं किया जा सकेगा।उपभोक्ता ऑनलाइन या ऑफलाइन बिल भुगतान कर सकेंगे।घरेलू बिजली कनेक्शन के लिए आवेदन कैसे करें ?घरेलु बिजली कनेक्शन हेतु आवेदन करना बहुत आसान है। इसके लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों सुविधा मौजूद है। चलिए सबसे पहले ऑफलाइन प्रक्रिया के बारे में जानते है।सबसे पहले घरेलु बिजली कनेक्शन का आवेदन फॉर्म प्राप्त करें। ये ऑनलाइन अपने बिजली कंपनी की आधिकारिक वेबसाइट से डाउनलोड कर सकते है। या आप बिजली ऑफिस या किसी स्टेशनरी से भी प्राप्त कर सकते है।आवेदन फॉर्म मिल जाने के बाद इसे ध्यान से भरें। इसमें आवेदक का नाम और पता ध्यान से लिखें। इसमें बिजली का लोड विवरण भी भरना अनिवार्य है।आवेदन फॉर्म के साथ अनिवार्य सभी दस्तावेज की फोटोकॉपी भी जरूर लगाएं।आवेदन फॉर्म भरने के बाद इसे सम्बंधित बिजली ऑफिस में सम्बंधित अधिकारी के पास जमा कर दें।आवेदन जमा करने के बाद उसकी पावती लेना ना भूलें।आवेदन की जाँच उपरान्त आपके घर मीटर लगाया जायेगा। इसके साथ ही नई बिजली कनेक्शन भी आपके घर जोड़ा जायेगा।घरेलू बिजली कनेक्शन के लिए ऑनलाइन अप्लाई कैसे करें ?आप घर बैठे भी घरेलू बिजली कनेक्शन के लिए अप्लाई कर सकते है। सभी बिजली कंपनियों ने इसकी सुविधा प्रदान किया हुआ है। चलिए इसकी प्रक्रिया को भी समझते है।सबसे पहले बिजली वितरण कंपनी की आधिकारिक वेबसाइट में जाना होगा।इसके बाद वेबसाइट में दिए गए Online New Connection ऑप्शन को चुनें।इसके बाद स्क्रीन पर आपसे मांगी गई सभी डिटेल्स को ध्यान से भरें।फिर सम्बंधित दस्तावेज को अपलोड करें।नई कनेक्शन के लिए लगने वाले चार्ज को ऑनलाइन बैंकिंग, क्रेडिट कार्ड या डेबिट कार्ड में माध्यम से पेमेंट करें।इसके बाद स्क्रीन पर रिसीप्ट मिलेगा। इसे ध्यान से सुरक्षित करके रख लें।आपके आवेदन की जाँच उपरांत बिजली विभाग आपके घर मीटर और नई कनेक्शन लगा देगा।इसे पढ़ें – कमर्शियल बिजली कनेक्शन कैसे ले पूरी जानकारीसारांश : घरेलू बिजली कनेक्शन कैसे ले, इसकी पूरी जानकारी स्टेप By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦स्टेप जानकारी यहाँ बताया गया है। अब कोई भी व्यक्ति बहुत आसानी से अपने घर में नई कनेक्शन लगवा पायेगा। अगर कनेक्शन लेने में आपको कोई परेशानी आये या इससे सम्बंधित आपके मन में कोई सवाल हो तो नीचे कमेंट बॉक्स में हमें बता सकते है। हम आपकी पूरी मदद करेंगे।हमें उम्मीद है कि नई बिजली कनेक्शन लेने की जानकारी आपको पसंद आया होगा। आप चाहे तो इस जानकरी को शेयर कर सकते है। इस वेबसाइट पर हम बिजली बिल से सम्बंधित सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करते है। अगर आप ऐसे ही नई नई जानकारी और लेटेस्ट अपडेट पाना चाहते हो तो गूगल सर्च बॉक्स पर www.bijlibillcheck.com सर्च करके भी यहाँ आ सकते हो। धन्यवाद !Categories बिजली कनेक्शनTagsDomestic Connection, घरेलू बिजली कनेक्शन, नई बिजली कनेक्शन कैसे ले, बिजली कनेक्शन के लिए आवेदन कैसे करेंबिजली बिल से सम्बंधित समस्या यहाँ लिखें