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Akshaya TritiyaBy social worker Vanita Kasani PunjabAn important day and festival of Indian cultureRead in another languagedownloadTake careEditbal vanita Mahila AshramAkshay III

अक्षय तृतीया

भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण दिवस एवं पर्व
   अक्षय तृतीया या आखा तीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं। पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है।[1] इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है।[2] वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीया शुभ होती है, किन्तु वैशाख माह की तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में मानी गई है।
अक्षय तृतीया
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अक्षय तृतीया
आधिकारिक नामअक्षय तृतीया
अन्य नामआखा तीज, अक्षय तीज
अनुयायीहिन्दूजैन
प्रकारHindu
उद्देश्यधर्म, पुण्य, धन और
कर्म आदि अक्षय फल
उत्सवव्रत, दान, पूजन
तिथिवैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि
समान पर्व

महत्व

अक्षय तृतीया का सर्वसिद्ध मुहूर्त के रूप में भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों की खरीददारी या घर, भूखण्ड, वाहन आदि की खरीददारी से सम्बन्धित कार्य किए जा सकते हैं।[3] नवीन वस्त्र, आभूषण आदि धारण करने और नई संस्था, समाज आदि की स्थापना या उदघाटन का कार्य श्रेष्ठ माना जाता है। पुराणों में लिखा है कि इस दिन पितरों को किया गया तर्पण तथा पिन्डदान अथवा किसी और प्रकार का दान, अक्षय फल प्रदान करता है। इस दिन गंगा स्नान करने से तथा भगवत पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यहाँ तक कि इस दिन किया गया जप, तप, हवन, स्वाध्याय और दान भी अक्षय हो जाता है। यह तिथि यदि सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र के दिन आए तो इस दिन किए गए दान, जप-तप का फल बहुत अधिक बढ़ जाता हैं। इसके अतिरिक्त यदि यह तृतीया मध्याह्न से पहले शुरू होकर प्रदोष काल तक रहे तो बहुत ही श्रेष्ठ मानी जाती है। यह भी माना जाता है कि आज के दिन मनुष्य अपने या स्वजनों द्वारा किए गए जाने-अनजाने अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करे तो भगवान उसके अपराधों को क्षमा कर देते हैं और उसे सदगुण प्रदान करते हैं, अतः आज के दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में सदा के लिए अर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान माँगने की परम्परा भी है।

हिन्दू धर्म में महत्व

अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर समुद्र या गंगा स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की शान्त चित्त होकर विधि विधान से पूजा करने का प्रावधान है। नैवेद्य में जौ या गेहूँ का सत्तू, ककड़ी और चने की दाल अर्पित किया जाता है। तत्पश्चात फल, फूल, बरतन, तथा वस्त्र आदि दान करके ब्राह्मणों को दक्षिणा दी जाती है।[4] ब्राह्मण को भोजन करवाना कल्याणकारी समझा जाता है। मान्यता है कि इस दिन सत्तू अवश्य खाना चाहिए तथा नए वस्त्र और आभूषण पहनने चाहिए। गौ, भूमि, स्वर्ण पात्र इत्यादि का दान भी इस दिन किया जाता है। यह तिथि वसन्त ऋतु के अन्त और ग्रीष्म ऋतु का प्रारम्भ का दिन भी है इसलिए अक्षय तृतीया के दिन जल से भरे घडे, कुल्हड, सकोरे, पंखे, खडाऊँ, छाता, चावल, नमक, घी, खरबूजा, ककड़ी, चीनी, साग, इमली, सत्तू आदि गरमी में लाभकारी वस्तुओं का दान पुण्यकारी माना गया है।[2][5][3] इस दान के पीछे यह लोक विश्वास है कि इस दिन जिन-जिन वस्तुओं का दान किया जाएगा, वे समस्त वस्तुएँ स्वर्ग या अगले जन्म में प्राप्त होगी। इस दिन लक्ष्मी नारायण की पूजा सफेद कमल अथवा सफेद गुलाब या पीले गुलाब से करना चाहिये।

सर्वत्र शुक्ल पुष्पाणि प्रशस्तानि सदार्चने।

दानकाले च सर्वत्र मन्त्र मेत मुदीरयेत्॥

[6]

अर्थात सभी महीनों की तृतीया में सफेद पुष्प से किया गया पूजन प्रशंसनीय माना गया है।

ऐसी भी मान्यता है कि अक्षय तृतीया पर अपने अच्छे आचरण और सद्गुणों से दूसरों का आशीर्वाद लेना अक्षय रहता है। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा विशेष फलदायी मानी गई है। इस दिन किया गया आचरण और सत्कर्म अक्षय रहता है।[6]

भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है, सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ इसी तिथि से हुआ है।[6] भगवान विष्णु ने नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था।[5] ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव भी इसी दिन हुआ था।[2] इस दिन श्री बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है और श्री लक्ष्मी नारायण के दर्शन किए जाते हैं। प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही पुनः खुलते हैं। वृन्दावन स्थित श्री बाँके बिहारी जी मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं।[5][3] जी.एम. हिंगे के अनुसार तृतीया 41 घटी 21 पल होती है तथा धर्म सिन्धु एवं निर्णय सिन्धु ग्रन्थ के अनुसार अक्षय तृतीया 6 घटी से अधिक होना चाहिए। पद्म पुराण के अनुसा इस तृतीया को अपराह्न व्यापिनी मानना चाहिए।[1] इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था।[2] ऐसी मान्यता है कि इस दिन से प्रारम्भ किए गए कार्य अथवा इस दिन को किए गए दान का कभी भी क्षय नहीं होता। मदनरत्न के अनुसार:

अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं। तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया॥

उद्दिष्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यैः। तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव॥

[5]

बाल वनिता महिला आश्रम

प्रचलित कथाएँ

अक्षय तृतीया की अनेक व्रत कथाएँ प्रचलित हैं। ऐसी ही एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक धर्मदास नामक वैश्य था। उसकी सदाचार, देव और ब्राह्मणों के प्रति काफी श्रद्धा थी। इस व्रत के महात्म्य को सुनने के पश्चात उसने इस पर्व के आने पर गंगा में स्नान करके विधिपूर्वक देवी-देवताओं की पूजा की, व्रत के दिन स्वर्ण, वस्त्र तथा दिव्य वस्तुएँ ब्राह्मणों को दान में दी।[3] अनेक रोगों से ग्रस्त तथा वृद्ध होने के बावजूद भी उसने उपवास करके धर्म-कर्म और दान पुण्य किया। यही वैश्य दूसरे जन्म में कुशावती का राजा बना।[5] कहते हैं कि अक्षय तृतीया के दिन किए गए दान व पूजन के कारण वह बहुत धनी प्रतापी बना। वह इतना धनी और प्रतापी राजा था कि त्रिदेव तक उसके दरबार में अक्षय तृतीया के दिन ब्राह्मण का वेष धारण करके उसके महायज्ञ में शामिल होते थे। अपनी श्रद्धा और भक्ति का उसे कभी घमण्ड नहीं हुआ और महान वैभवशाली होने के बावजूद भी वह धर्म मार्ग से विचलित नहीं हुआ। माना जाता है कि यही राजा आगे चलकर राजा चंद्रगुप्त के रूप में पैदा हुआ।[2][3]

स्कंद पुराण और भविष्य पुराण में उल्लेख है कि वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को रेणुका के गर्भ से भगवान विष्णु ने परशुराम रूप में जन्म लिया। कोंकण और चिप्लून के परशुराम मंदिरों में इस तिथि को परशुराम जयन्ती बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। दक्षिण भारत में परशुराम जयन्ती को विशेष महत्व दिया जाता है। परशुराम जयन्ती होने के कारण इस तिथि में भगवान परशुराम के आविर्भाव की कथा भी सुनी जाती है। इस दिन परशुराम जी की पूजा करके उन्हें अर्घ्य देने का बड़ा माहात्म्य माना गया है। सौभाग्यवती स्त्रियाँ और क्वारी कन्याएँ इस दिन गौरी-पूजा करके मिठाई, फल और भीगे हुए चने बाँटती हैं, गौरी-पार्वती की पूजा करके धातु या मिट्टी के कलश में जल, फल, फूल, तिल, अन्न आदि लेकर दान करती हैं। मान्यता है कि इसी दिन जन्म से ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय भृगुवंशी परशुराम का जन्म हुआ था। एक कथा के अनुसार परशुराम की माता और विश्वामित्र की माता के पूजन के बाद प्रसाद देते समय ऋषि ने प्रसाद बदल कर दे दिया था। जिसके प्रभाव से परशुराम ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय स्वभाव के थे और क्षत्रिय पुत्र होने के बाद भी विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाए। उल्लेख है कि सीता स्वयंवर के समय परशुराम जी अपना धनुष बाण श्री राम को समर्पित कर संन्यासी का जीवन बिताने अन्यत्र चले गए। अपने साथ एक फरसा रखते थे तभी उनका नाम परशुराम पड़ा।

जैन धर्म में अक्षय-तृतीया

तीर्थंकर आदिनाथ को प्रथम आहार देते राजा श्रेयांस (चित्र- अजमेर जैन मन्दिर)

जैन धर्मावलम्बियों का महान धार्मिक पर्व है। इस दिन जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान ने एक वर्ष की पूर्ण तपस्या करने के पश्चात इक्षु (शोरडी-गन्ने) रस से पारायण किया था। जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर श्री आदिनाथ भगवान ने सत्य व अहिंसा का प्रचार करने एवं अपने कर्म बन्धनों को तोड़ने के लिए संसार के भौतिक एवं पारिवारिक सुखों का त्याग कर जैन वैराग्य अंगीकार कर लिया। सत्य और अहिंसा के प्रचार करते-करते आदिनाथ प्रभु हस्तिनापुर गजपुर पधारे जहाँ इनके पौत्र सोमयश का शासन था। प्रभु का आगमन सुनकर सम्पूर्ण नगर दर्शनार्थ उमड़ पड़ा सोमप्रभु के पुत्र राजकुमार श्रेयांस कुमार ने प्रभु को देखकर उसने आदिनाथ को पहचान लिया और तत्काल शुद्ध आहार के रूप में प्रभु को गन्ने का रस दिया, जिससे आदिनाथ ने व्रत का पारायण किया। जैन धर्मावलंबियों का मानना है कि गन्ने के रस को इक्षुरस भी कहते हैं इस कारण यह दिन इक्षु तृतीया एवं अक्षय तृतीया के नाम से विख्यात हो गया।

भगवान श्री आदिनाथ ने लगभग 400 दिवस की तपस्या के पश्चात पारायण किया था। यह लम्बी तपस्या एक वर्ष से अधिक समय की थी अत: जैन धर्म में इसे वर्षीतप से सम्बोधित किया जाता है। आज भी जैन धर्मावलम्बी वर्षीतप की आराधना कर अपने को धन्य समझते हैं, यह तपस्या प्रति वर्ष कार्तिक के कृष्ण पक्ष की अष्टमी से आरम्भ होती है और दूसरे वर्ष वैशाख के शुक्लपक्ष की अक्षय तृतीया के दिन पारायण कर पूर्ण की जाती है। तपस्या आरम्भ करने से पूर्व इस बात का पूर्ण ध्यान रखा जाता है कि प्रति मास की चौदस को उपवास करना आवश्यक होता है। इस प्रकार का वर्षीतप करीबन 13 मास और दस दिन का हो जाता है। उपवास में केवल गर्म पानी का सेवन किया जाता है।

भारत वर्ष में इस प्रकार की वर्षी तपश्चर्या करने वालों की संख्या हज़ारों तक पहुँच जाती है। यह तपस्या धार्मिक दृष्टिकोण से अन्यक्त ही महत्त्वपूर्ण है, वहीं आरोग्य जीवन बिताने के लिए भी उपयोगी है। संयम जीवनयापन करने के लिए इस प्रकार की धार्मिक क्रिया करने से मन को शान्त, विचारों में शुद्धता, धार्मिक प्रवृत्रियों में रुचि और कर्मों को काटने में सहयोग मिलता है। इसी कारण इस अक्षय तृतीया का जैन धर्म में विशेष धार्मिक महत्व समझा जाता है। मन, वचन एवं श्रद्धा से वर्षीतप करने वाले को महान समझा जाता है।

संस्कृति में

इस दिन से शादी-ब्याह करने की शुरुआत हो जाती है। बड़े-बुजुर्ग अपने पुत्र-पुत्रियों के लगन का मांगलिक कार्य आरंभ कर देते हैं। अनेक स्थानों पर छोटे बच्चे भी पूरी रीति-रिवाज के साथ अपने गुड्‌डा-गुड़िया का विवाह रचाते हैं। इस प्रकार गाँवों में बच्चे सामाजिक कार्य व्यवहारों को स्वयं सीखते व आत्मसात करते हैं। कई जगह तो परिवार के साथ-साथ पूरा का पूरा गाँव भी बच्चों के द्वारा रचे गए वैवाहिक कार्यक्रमों में सम्मिलित हो जाता है। इसलिए कहा जा सकता है कि अक्षय तृतीया सामाजिक व सांस्कृतिक शिक्षा का अनूठा त्यौहार है। कृषक समुदाय में इस दिन एकत्रित होकर आने वाले वर्ष के आगमन, कृषि पैदावार आदि के शगुन देखते हैं। ऐसा विश्वास है कि इस दिन जो सगुन कृषकों को मिलते हैं, वे शत-प्रतिशत सत्य होते हैं। राजपूत समुदाय में आने वाला वर्ष सुखमय हो, इसलिए इस दिन शिकार पर जाने की परंपरा है।

विभिन्न प्रान्तों में अक्षय तृतीया

बुन्देलखण्ड में अक्षय तृतीया से प्रारम्भ होकर पूर्णिमा तक बडी धूमधाम से उत्सव मनाया जाता है, जिसमें कुँवारी कन्याएँ अपने भाई, पिता तथा गाँव-घर और कुटुम्ब के लोगों को शगुन बाँटती हैं और गीत गाती हैं। अक्षय तृतीया को राजस्थान में वर्षा के लिए शगुन निकाला जाता है, वर्षा की कामना की जाती है, लड़कियाँ झुण्ड बनाकर घर-घर जाकर शगुन गीत गाती हैं और लड़के पतंग उड़ाते हैं। यहाँ इस दिन सात तरह के अन्नों से पूजा की जाती है। मालवा में नए घड़े के ऊपर खरबूजा और आम के पल्लव रख कर पूजा होती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन कृषि कार्य का आरम्भ किसानों को समृद्धि देता है।

अन्य महत्त्वपूर्ण तिथियाँ

हिन्दू धर्म मे चार तिथियाँ अति श्रेष्ठ मानी गयीं है

सन्दर्भ

  1. ↑   अक्षय तृतीया : दान का महापर्व Archived 2010-05-18 at the Wayback Machine। वेब दुनिया
  2. ↑      शुभ मुहूर्त का दूसरा नाम है अक्षय तृतीया Archived 2009-05-02 at the Wayback Machine। नवभारत टाइम्स। २७ अप्रैल २००९। पं.केवल आनंद जोशी
  3. ↑      अक्षय तृतीया का माहात्म्य एवं कथा Archived 2010-01-20 at the Wayback Machine। वेब दुनिया।
  4.  अक्षय तृतीया पर मिलता है अक्षय फल Archived 2009-12-13 at the Wayback Machine। वेब दुनिया
  5. ↑      अक्षय तृतीया (16 मई) की महिमा निराली Archived 2010-05-16 at the Wayback Machine। हिन्दी लोक। पं.हनुमान मिश्रा
  6. ↑    danik bhaskarअक्षय पुण्यदायिनी अक्षय तृतीया Archived 2010-05-19 at the Wayback Machine। दैनिक भास्कर। प. जयगोविंद शास्त्री। १६ मई २०१०

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क्या क्या डॉक्यूमेंट चाहिए ?घरेलु बिजली कनेक्शन लगवाने के लिए ज्यादा डॉक्युमेंट की जरुरत नहीं पड़ती है। फिर भी जो चीजें अनिवार्य है उसे आप नीचे लिस्ट में देख सकते है –नई बिजली कनेक्शन के लिए आवेदन फॉर्म लगेगा।एग्रीमेंट की कॉपी लगेगाशपथ पत्र लगेगाजिस जगह कनेक्शन लगता है उसका पेपर लगेगाराशन कार्डआधार कार्डपासपोर्ट साइज फोटोघरेलू बिजली कनेक्शन के नियमघरेलु बिजली कनेक्शन लगवाने के लिए कोई कठोर नियम नहीं बनाये गए है। लेकिन आपको इसके दिशा निर्देश के अनुसार ही कनेक्शन मिलता है। इसे आप नीचे पढ़ सकते है –नया बिजली कनेक्शन बिना मीटर के नहीं दिया जाएगा।बिजली मीटर डिजिटल रहेगा।आवेदक मूल निवासी होना चाहिए।जहाँ कनेक्शन लगवाना है उसका पेपर होना चाहिए।प्रतिमाह बिजली बिल का भुगतान करना होगा।बिजली बिल नहीं पटाने की स्थिति में विभाग कभी भी आपका कनेक्शन काट सकता है।घरेलु कनेक्शन का उपयोग व्यावसायिक कार्य हेतु नहीं किया जा सकेगा।उपभोक्ता ऑनलाइन या ऑफलाइन बिल भुगतान कर सकेंगे।घरेलू बिजली कनेक्शन के लिए आवेदन कैसे करें ?घरेलु बिजली कनेक्शन हेतु आवेदन करना बहुत आसान है। इसके लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों सुविधा मौजूद है। चलिए सबसे पहले ऑफलाइन प्रक्रिया के बारे में जानते है।सबसे पहले घरेलु बिजली कनेक्शन का आवेदन फॉर्म प्राप्त करें। ये ऑनलाइन अपने बिजली कंपनी की आधिकारिक वेबसाइट से डाउनलोड कर सकते है। या आप बिजली ऑफिस या किसी स्टेशनरी से भी प्राप्त कर सकते है।आवेदन फॉर्म मिल जाने के बाद इसे ध्यान से भरें। इसमें आवेदक का नाम और पता ध्यान से लिखें। इसमें बिजली का लोड विवरण भी भरना अनिवार्य है।आवेदन फॉर्म के साथ अनिवार्य सभी दस्तावेज की फोटोकॉपी भी जरूर लगाएं।आवेदन फॉर्म भरने के बाद इसे सम्बंधित बिजली ऑफिस में सम्बंधित अधिकारी के पास जमा कर दें।आवेदन जमा करने के बाद उसकी पावती लेना ना भूलें।आवेदन की जाँच उपरान्त आपके घर मीटर लगाया जायेगा। इसके साथ ही नई बिजली कनेक्शन भी आपके घर जोड़ा जायेगा।घरेलू बिजली कनेक्शन के लिए ऑनलाइन अप्लाई कैसे करें ?आप घर बैठे भी घरेलू बिजली कनेक्शन के लिए अप्लाई कर सकते है। सभी बिजली कंपनियों ने इसकी सुविधा प्रदान किया हुआ है। चलिए इसकी प्रक्रिया को भी समझते है।सबसे पहले बिजली वितरण कंपनी की आधिकारिक वेबसाइट में जाना होगा।इसके बाद वेबसाइट में दिए गए Online New Connection ऑप्शन को चुनें।इसके बाद स्क्रीन पर आपसे मांगी गई सभी डिटेल्स को ध्यान से भरें।फिर सम्बंधित दस्तावेज को अपलोड करें।नई कनेक्शन के लिए लगने वाले चार्ज को ऑनलाइन बैंकिंग, क्रेडिट कार्ड या डेबिट कार्ड में माध्यम से पेमेंट करें।इसके बाद स्क्रीन पर रिसीप्ट मिलेगा। इसे ध्यान से सुरक्षित करके रख लें।आपके आवेदन की जाँच उपरांत बिजली विभाग आपके घर मीटर और नई कनेक्शन लगा देगा।इसे पढ़ें – कमर्शियल बिजली कनेक्शन कैसे ले पूरी जानकारीसारांश : घरेलू बिजली कनेक्शन कैसे ले, इसकी पूरी जानकारी स्टेप By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦स्टेप जानकारी यहाँ बताया गया है। अब कोई भी व्यक्ति बहुत आसानी से अपने घर में नई कनेक्शन लगवा पायेगा। अगर कनेक्शन लेने में आपको कोई परेशानी आये या इससे सम्बंधित आपके मन में कोई सवाल हो तो नीचे कमेंट बॉक्स में हमें बता सकते है। हम आपकी पूरी मदद करेंगे।हमें उम्मीद है कि नई बिजली कनेक्शन लेने की जानकारी आपको पसंद आया होगा। आप चाहे तो इस जानकरी को शेयर कर सकते है। इस वेबसाइट पर हम बिजली बिल से सम्बंधित सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करते है। अगर आप ऐसे ही नई नई जानकारी और लेटेस्ट अपडेट 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कन्याकुमारी By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦कन्याकुमारी भारत के दक्षिणी छोर पर तमिलनाडु राज्य का एक तटीय शहर हैकिसी अन्य भाषा में पढ़ेंडाउनलोड करेंध्यान रखेंसंपादित करेंकन्याकुमारी (Kanyakumari) भारत के तमिल नाडु राज्य के कन्याकुमारी ज़िले में स्थित एक नगर है। यह भारत की मुख्यभूमि का दक्षिणतम नगर है। यहाँ से दक्षिण में हिन्द महासागर, पूर्व में बंगाल की खाड़ी और पश्चिम में अरब सागर है। इनके साथ सटा हुआ तट 71.5 किमी तक विस्तारित है। समुद्र के साथ तिरुवल्लुवर मूर्ति और विवेकानन्द स्मारक शिला खड़े हैं। कन्याकुमारी एक महत्वपूर्ण हिन्दू तीर्थस्थल भी है।[1][2]कन्याकुमारीKanyakumariகன்னியாகுமரிविवेकानंद स्मारक, कन्याकुमारीविवेकानंद स्मारक, कन्याकुमारीकन्याकुमारी की तमिलनाडु के मानचित्र पर अवस्थितिकन्याकुमारीकन्याकुमारीतमिल नाडु में स्थितिनिर्देशांक: 8°05′02″N 77°32′46″E / 8.084°N 77.546°Eदेश भारतप्रान्त तमिल नाडुज़िला कन्याकुमारी ज़िलाजनसंख्या (2011) • कुल 29,761भाषा • प्रचलित तमिलसमय मण्डल भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30)पिनकोड 629 702दूरभाष कोड 91-4652 और 91-4651वाहन पंजीकरण TN 74 और TN 75वेबसाइट www.kanyakumari.tn.nic.inविवरणसंपादित करेंकन्याकुमारी हिन्द महासागर, बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर का संगम स्थल है, जहां भिन्न सागर अपने विभिन्न रंगो से मनोरम छटा बिखेरते हैं। भारत के सबसे दक्षिण छोर पर बसा कन्याकुमारी वर्षो से कला, संस्कृति, सभ्यता का प्रतीक रहा है। भारत के पर्यटक स्थल के रूप में भी इस स्थान का अपना ही महत्च है। दूर-दूर फैले समुद्र के विशाल लहरों के बीच यहां का सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा बेहद आकर्षक लगता हैं। समुद्र बीच पर फैले रंग बिरंगी रेत इसकी सुंदरता में चार चांद लगा देता है।इतिहाससंपादित करेंकन्याकुमारी दक्षिण भारत के महान शासकों चोल, चेर, पांड्य के अधीन रहा है। यहां के स्मारकों पर इन शासकों की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। इस जगह का नाम कन्‍याकुमारी पड़ने के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने असुर बानासुरन को वरदान दिया था कि कुंवारी कन्या के अलावा किसी के हाथों उसका वध नहीं होगा। प्राचीन काल में भारत पर शासन करने वाले राजा भरत को आठ पुत्री और एक पुत्र था। भरत ने अपना साम्राज्य को नौ बराबर हिस्सों में बांटकर अपनी संतानों को दे दिया। दक्षिण का हिस्सा उसकी पुत्री कुमारी को मिला। कुमारी को शक्ति देवी का अवतार माना जाता था। कुमारी ने दक्षिण भारत के इस हिस्से पर कुशलतापूर्वक शासन किया। उसकी ईच्‍छा थी कि वह शिव से विवाह करें। इसके लिए वह उनकी पूजा करती थी। शिव विवाह के लिए राजी भी हो गए थे और विवाह की तैयारियां होने लगीं थी। लेकिन नारद मुनि चाहते थे कि बानासुरन का कुमारी के हाथों वध हो जाए। इस कारण शिव और देवी कुमारी का विवाह नहीं हो पाया। इस बीच बानासुरन को जब कुमारी की सुंदरता के बारे में पता चला तो उसने कुमारी के समक्ष शादी का प्रस्ताव रखा। कुमारी ने कहा कि यदि वह उसे युद्ध में हरा देगा तो वह उससे विवाह कर लेगी। दोनों के बीच युद्ध हुआ और बानासुरन को मृत्यु की प्राप्ति हुई। कुमारी की याद में ही दक्षिण भारत के इस स्थान को कन्याकुमारी कहा जाता है। माना जाता है कि शिव और कुमारी के विवाह की तैयारी का सामान आगे चलकर रंग बिरंगी रेत में परिवर्तित हो गया।दर्शनीय स्थलसंपादित करेंकन्याकुमारी अम्मन मंदिरसंपादित करेंसागर के मुहाने के दाई ओर स्थित यह एक छोटा सा मंदिर है जो पार्वती को समर्पित है। मंदिर तीनों समुद्रों के संगम स्थल पर बना हुआ है। यहां सागर की लहरों की आवाज स्वर्ग के संगीत की भांति सुनाई देती है। भक्तगण मंदिर में प्रवेश करने से पहले त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाते हैं जो मंदिर के बाई ओर 500 मीटर की दूरी पर है। मंदिर का पूर्वी प्रवेश द्वार को हमेशा बंद करके रखा जाता है क्योंकि मंदिर में स्थापित देवी के आभूषण की रोशनी से समुद्री जहाज इसे लाइटहाउस समझने की भूल कर बैठते है और जहाज को किनारे करने के चक्‍कर में दुर्घटनाग्रस्‍त हो जाते है।गांधी स्मारकसंपादित करेंगाँधी मंडपयह स्मारक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को समर्पित है। यही पर महात्मा गांधी की चिता की राख रखी हुई है। इस स्मारक की स्थापना 1956 में हुई थी। महात्मा गांधी 1937 में यहां आए थे। उनकी मृत्‍यु के बाद 1948 में कन्याकुमारी में ही उनकी अस्थियां विसर्जित की गई थी। स्मारक को इस प्रकार डिजाइन किया गया है कि महात्मा गांधी के जन्म दिवस पर सूर्य की प्रथम किरणें उस स्थान पर पड़ती हैं जहां महात्मा की राख रखी हुई है।तिरूवल्लुवर मूर्तिसंपादित करें133 फीट ऊंचा संत तिरुवल्लुवर मूर्तितिरुक्कुरुल की रचना करने वाले अमर तमिल कवि तिरूवल्लुवर की यह प्रतिमा पर्यटकों को बहुत लुभाती है। 38 फीट ऊंचे आधार पर बनी यह प्रतिमा 95 फीट की है। इस प्रतिमा की कुल उंचाई 133 फीट है और इसका वजन 2000 टन है। इस प्रतिमा को बनाने में कुल 1283 पत्थर के टुकड़ों का उपयोग किया गया था।विवेकानंद रॉक मेमोरियलसंपादित करेंसमुद्र में बने इस स्थान पर बड़ी संख्या में पर्यटक आते है। इस पवित्र स्थान को विवेकानंद रॉक मेमोरियल कमेटी ने 1970 में स्वामी विवेकानंद के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए बनवाया था। इसी स्थान पर स्वामी विवेकानंद गहन ध्यान लगाया था। इस स्थान को श्रीपद पराई के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार इस स्थान पर कन्याकुमारी ने भी तपस्या की थी। कहा जाता है कि यहां कुमारी देवी के पैरों के निशान मुद्रित हैं। यह स्मारक विश्व प्रसिद्ध है।सुचीन्द्रमसंपादित करेंमुख्य लेख: सुचीन्द्रमयह छोटा-सा गांव कन्याकुमारी से लगभग 12 किमी दूर स्थित है। यहां का थानुमलायन मंदिर काफी प्रसिद्ध है। मंदिर में स्‍थापित हनुमान की छह मीटर की उंची मूर्ति काफी आकर्षक है। मंदिर के मुख्य गर्भगृह में ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश जोकि इस ब्रह्मांड के रचयिता समझे जाते है उनकी मूर्ति स्‍थापित है। यहां नौवीं शताब्दी के प्राचीन अभिलेख भी पाए गए हैं। सुचीन्द्रम शक्तिपीठ हिन्दूओं के लिए प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर भारत के तमिलनाडु राज्य, कन्याकुमारी में स्थित है। माना जाता है कि सुचिंद्रम में ‘सुची’ शब्द संस्कृत से लिया गया है जिसका अर्थ है ‘शुद्ध’ होना। सुचीन्द्रम शक्ति पीठ को ठाँउमालयन या स्तानुमालय मंदिर भी कहा जाता है।यह मंदिर सात मंजिला है जिसका सफेद गोपुरम काफी दूर से दिखाई देता है। इस मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी में किया गया था। सुचीन्द्रम शक्तिपीठ, मंदिर में बनी हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर का प्रवेश द्वार लगभग 24 फीट उंचा है जिसके दरवाजे पर सुंदर नक्काशी की गई है। यह मंदिर बड़ी संख्या में वैष्णव और सैवियों दोनों को आकर्षित करता है। मंदिर परिसर में विभिन्न देवी-देवताओं के लिए लगभग 30 मंदिर है जिसमें पवित्र स्थान में बड़ा लिंगम, आसन्न मंदिर में विष्णु की मूर्ति और उत्तरी गलियारे के पूर्वी छोर पर हनुमान की एक बड़ी मूर्ति है। यह मंदिर हिंदू धर्म के लगभग सभी देवी-देवताओं का प्रतिनिधित्व करता है।मंदिर के मुख्य देवता भगवान शिव, भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा को एक ही रूप में स्तरनुमल्याम कहा जाता है। स्तरनुमल्याम तीन देवताओं को दर्शाता है जिसमें ‘स्तानु’ का अर्थ ‘शिव’ है, ‘माल’ का अर्थ ‘विष्णु’ है और ‘आयन’ का अर्थ ‘ब्रह्मा’ है। भारत के उन मंदिरों में से एक है जिसमें त्रीमूर्ति व तीनों देवताओं की पूजा एक मंदिर में की जाती है। यह मंदिर माता के 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर में शक्ति को नारायणी के रूप पूजा जाता है और भैरव को संहार भैरव के रूप में पूजा जाता है। पुराणों के अनुसार जहाँ-जहाँ सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाते हैं। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं।पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती ने उनके पिता दक्षेस्वर द्वारा किये यज्ञ कुण्ड में अपने प्राण त्याग दिये थे, तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण चक्कर लगा रहे थे इसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था, जिसमें से सती की ऊपर के दांत इस स्थान पर गिरे थे। पौराणिक कथा के अनुसार देवों के राजा इन्द्र को महर्षि गौतम द्वारा दिये गए अभिशाप से इस स्थान पर मुक्ति मिली थी।सुचीन्द्रम शक्तिपीठ में सभी त्यौहार मनाये जाते है विशेष कर शिवरात्रि, दुर्गा पूजा और नवरात्र के त्यौहार पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। लेकिन दो प्रमुख त्यौहार है, जो इस मंदिर का प्रमुख आकर्षण का केन्द्र हैं, ‘सुचंद्रम मर्गली त्यौहार’ और ‘रथ यात्रा’ हैं। इन त्यौहारों के दौरान, कुछ लोग भगवान की पूजा के प्रति सम्मान और समर्पण के रूप में व्रत (भोजन नहीं खाते) रखते हैं। त्यौहार के दिनों में मंदिर को फूलो व लाईट से सजाया जाता है। मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण श्रद्धालुओं के दिल और दिमाग को शांति प्रदान करता है।कन्याकुमारी में घूमने की जगह: विवेकानन्द शिला , विवेकानन्द की मूर्ति एवं विवेकानन्द मठनागराज मंदिरसंपादित करेंकन्याकुमारी से 20 किमी दूर नगरकोल का नागराज मंदिर नाग देव को समर्पित है। यहां भगवान विष्णु और शिव के दो अन्य मंदिर भी हैं। मंदिर का मुख्य द्वार चीन की बुद्ध विहार की कारीगरी की याद दिलाता है।पद्मनाभपुरम महलसंपादित करेंमुख्य लेख: पद्मनाभपुरमपद्मनाभपुरम महल की विशाल हवेलियां त्रावनकोर के राजा द्वारा बनवाया हैं। ये हवेलियां अपनी सुंदरता और भव्यता के लिए जानी जाती हैं। कन्याकुमारी से इनकी दूरी 45 किमी है। यह महल केरल सरकार के पुरातत्व विभाग के अधीन हैं।कोरटालम झरनासंपादित करेंयह झरना 167 मीटर ऊंची है। इस झरने के जल को औषधीय गुणों से युक्त माना जाता है। यह कन्याकुमारी से 137 किमी दूरी पर स्थित है।तिरूचेन्दूरसंपादित करें85 किमी दूर स्थित तिरूचेन्दूर के खूबसूरत मंदिर भगवान सुब्रमण्यम को समर्पित हैं। बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित इस मंदिर को भगवान सुब्रमण्यम के 6 निवासों में से एक माना जाता है।उदयगिरी किलासंपादित करेंकन्याकुमारी से 34 किमी दूर यह किला राजा मरतड वर्मा द्वारा 1729-1758 ई. दौरान बनवाया गया था। इसी किले में राजा के विश्वसनीय यूरोपियन दोस्त जनरल डी लिनोय की समाधि भी है।चित्रदीर्घासंपादित करेंसूर्योदय में विवेकानंद स्मारक और वल्लुवर मूर्ति फ्रान्सिस ज़ेवियर गिरजा सूर्योदय में विवेकानंद स्मारक शिला वट्टकोट्टई फोर्ट से पश्चिमी घाट का दृश्य रात्रि में 133 फुट ऊँची तिरुवल्लुवर मूर्ति पद्मनाभपुरम महल चितराल जैन स्थापत्य मातूर जलवाही (एक्वेडक्ट) तीरपरप्पु जलप्रपात तेंगीपट्टिनम नदीमुख नागराज मंदिर, नागरकोविल उदयगिरि दुर्ग से पहाड़ियों का दृश्य सुचींद्रम मंदिर, नागरकोविल के समीप मुट्टोम गाँव कीरीपरई के वन में जलधारा पेचीपरई बाँध, पृष्ठभूमि में पश्चिमी घाट तीरपरप्पु मंदिर, तीरपरप्पु जलप्रपात के समीप तिरुवट्टार का आदि केशव मंदिर - भीतरी मंदिर 2000 वर्ष से अधिक पुरातन है मुट्टोम तट के पास दृश्य चितराल के पहाड़ी-मंदिर पर कला व तक्षित-शिला पेचीपरई में रबड़ कृषि कन्याकुमारी के समीप मारुतिवाड़ मलई - मान्यता है कि सीता की सहायता करने लंका को जाते हुए हनुमान ने यहाँ पहाड़ धर दिया था कन्याकुमारी के समीप ग्राम-दृश्य वट्टकोट्टई दुर्ग से सागर-दृश्य तीर्थयात्रि कन्याकुमारी में त्रिसागर-मिलन पर स्नान करते हुए नागरकोविल-तिरुवनंतपुरम राजमार्ग के रास्ते में कमल-ताल वट्टकोट्टई दुर्ग के पास काले रेत का बालूतट (बीच) कीरीपरई के समीप वट्टपरई मुट्टोम प्रकाशस्तम्भ (लाइटहाउस), सौ वर्षों से भी पुराना रात्रि में गाँधी मंडपम, कन्याकुमारी कन्याकुमारी के पास कोवलम गाँव तिरुपरप्पु जलप्रपात मुट्टोम तट उदयगिरि दुर्ग में कप्तान दे लान्नोय की कब्र सुनामी स्मारकBy समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦आवागमनसंपादित करेंवायुमार्ग-नजदीकी एयरपोर्ट तिरूअनंतपुरम है जो कन्याकुमारी से 89 किलोमीटर दूर है। यहां से बस या टैक्सी के माध्यम से कन्याकुमारी पहुंचा जा सकता है। यहां से लक्जरी कार भी किराए पर उपलब्ध हैं।रेलमार्ग-कन्याकुमारी चैन्नई सहित भारत के प्रमुख शहरों से रेल मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। चैन्नई से कन्याकुमारी एक्सप्रेस द्वारा यहां जाया जा सकता है।सड़क मार्ग-बस द्वारा कन्याकुमारी जाने के लिए त्रिची, मदुरै, चैन्नई, तिरूअनंतपुरम और तिरूचेन्दूर से नियमित बस सेवाएं हैं। तमिलनाड़ पर्यटन विभाग कन्याकुमारी के लिए सिंगल डे बस टूर की व्यवस्था भी करता है। राष्ट्रीय राजमार्ग 44 का दक्षिणी छोर यहाँ है और यह उत्तर दिशा में जम्मू और कश्मीर तक जाता है।भ्रमण समयसंपादित करेंसमुद्र के किनारे होने के कारण कन्याकुमारी में साल भर मनोरम वातावरण रहता है। यूं तो पूरा साल कन्याकुमारी जाने लायक होता है लेकिन फिर भी पर्यटन के लिहाज से अक्टूबर से मार्च की अवधि सबसे बेहतर मानी जाती है।खरीददारीसंपादित करेंपर्यटक अक्सर यहां से विभिन्न रंगों के रेत के पैकेट खरीदतें हैं। यहां से सीप और शंख के अलावा प्रवाली शैलभित्ती के टुकड़ों की खरीददारी की जा सकती है। साथ ही केरल शैली की नारियल जटाएं और लकड़ी की हैंडीक्राफ्ट भी खरीदी जा सकती हैं।इन्हें भी देखेंसंपादित करेंकन्याकुमारी ज़िलासन्दर्भसंपादित करें↑ "Lonely Planet South India & Kerala," Isabella Noble et al, Lonely Planet, 2017, ↑ "Tamil Nadu, Human Development Report," Tamil Nadu Government, Berghahn Books, 2003, ISBN Last edited 4 months ago By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦RELATED PAGESकन्याकुमारी जिलातमिलनाडु का जिलानैना देवी मंदिर, हिमाचल प्रदेश By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦मरुंगूरसामग्री CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उल्लेख ना किया गया हो।गोपनीयता नीति उपयोग की शर्तेंडेस्कटॉप