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गोलीय खगोलशास्त्र By समाजसेवी वनिता कासनियांकिसी अन्य भाषा में पढ़ेंध्यान रखेंसंपादित करेंगोलीय खगोलशास्त्र (spherical astronomy) या स्थितीय खगोलशास्त्र (positional astronomy) खगोलशास्त्र की वह शाखा है जिसमें खगोलीय वस्तुओं का किसी विशेष समय, तिथि या पृथ्वी पर स्थित स्थान पर खगोलीय गोले में स्थान अनुमानित करा जाता है। यह अध्ययन की शाखा गोलीय ज्यामिति के सिद्धांतों व विधियों और खगोलमिति की मापन-कलाओं पर निर्भर है। ऐतिहासिक दृष्टि से गोलीय खगोलशास्त्र को पूरे खगोलशास्त्र की प्राचीनतम शाखा माना जा सकता है क्योंकि धार्मिक, ज्योतिष, समयानुमान और दिक्चालन (नैविगेशन) कार्यों के लिये मानव आकाश में तारों, तारामंडलों, ग्रहों, सूर्य व चंद्रमा की स्थिति को ग़ौर से जाँचता-समझता रहा है। अकाश में खगोलीय वस्तुओं के स्थानों को गणितीय रूप से समझने के विज्ञान को खगोलमिति (astronomy) कहते हैं।[1]काल्पनिक खगोलीय गोले में घूर्णन करती पृथ्वी। चित्र में तारे (श्वेत), सूर्यपथ (लाल) और भूमध्यीय निर्देशांक प्रणाली की दाएँ आरोहण व दिक्पात की रेखाएँ (हरी) दिखाई गई हैं।खगोलीय गोले के बाहर से दायाँ आरोहण (right ascension, नीला) व दिक्पात (declination, हरा)निर्देशांक प्रणालियाँ संपादित करेंगोलीय खगोलशास्त्र के प्राथमिक तत्व निर्देशांक प्रणालियाँ (coordinate systems) और समय हैं। अकाश में वस्तुओं के निर्देशांक भूमध्यीय निर्देशांक प्रणाली के अनुसार तय किये जाते हैं जिसमें पृथ्वी की भूमध्य रेखा को कल्पित रूप से उभारकर खगोलीय गोले पर भी खेंचा जाता है। इस प्रणाली में किसी भी आकाशीय वस्तु का स्थान उसके दाएँ आरोहण (α, right ascension) और दिक्पात (δ, declination) से निर्धारित हो जाती है। फिर अक्षांश (लैटिट्यूड) और समय के प्रयोग से उस वस्तु का क्षितिजीय निर्देशांक प्रणाली में स्थान अनुमानित करा जा सकता है, जो ऊँचाई (altitude) और दिगंश (azimuth) नामक दो राशियों द्वारा व्यक्त करा जाता है।[2]सूचीपत्र, पंचांग व बाल वनिता महिला आश्रमतारामंडलसंपादित करेंकिसी वर्ष की तारों व गैलेक्सियों जैसी खगोलीय वस्तुओं के निर्देशांकों की तालिका तारा सूचीपत्र (star catalog) में मिलती हैं। अयन (precession) और डोलन (nutation) के प्रभाव समय के साथ-साथ इन निर्देशांकों को धीरे-धीरे बदलते रहते हैं और इसलिए कालक्रमानुसार नये तारा सूचीपत्र प्रकाशित करे जाते हैं। सूरज और ग्रहों की आकाश में स्थिति निर्धारित करने के लिये पंचांग (ephemeris) प्राचीनकाल से ही बनते आ रहे हैं, जिनमें यह लिखा जाता है कि किसी विशेष समय पर कोई खगोलीय वस्तु आकाश में किस स्थान पर नज़र आएगी।मानव आँख बिना किसी दूरबीन के लगभग ६००० तारे पहचानने में सक्षम हैं जिनमें से आधे किसी भी समय पर क्षितिज के नीचे और दृष्टि से बाहर होते हैं। आधुनिक तारा-तालिकाओं में खगोलीय गोले को ८८ तारामंडलों में बांटा गया है और हर तारा किसी तारामंडल क्षेत्र का हिस्सा बनाया गया है। आधुनिक काल में ध्रुव तारा (Polaris) हमेशा ही पृथ्वी उत्तरी ध्रुव के लगभग ऊपर स्थित होता है।[3]इन्हें भी देखेंसंपादित करेंखगोलीय गोलासन्दर्भसंपादित करें↑ Robin M. Green, Spherical Astronomy, 1985, Cambridge University Press, ISBN 0-521-31779-7↑ William M. Smart, edited by Robin M. Green, Textbook on Spherical Astronomy, 1977, Cambridge University Press, ISBN 0-521-29180-1↑ "Universe," William J. Kaufmann and Roger A. Freedman, W.H. Freeman & Company, 1999, ISBN 96734956, ... Actually, the unaided human eye can detect only about 6000 stars ... The entire sky is divided up into a total of 88 constellations of different shapes and sizes ...Last edited 1 year ago Vnita punjabRELATED PAGESदिगंशखगोलीय निर्देशांक पद्धतिक्षैतिज निर्देशांक प्रणालीसामग्री Vnita Kasnia Punjab के अधीन है जब तक अलग से उल्लेख ना किया गया हो।गोपनीयता नीति उपयोग की शर्तेंडेस्कटॉप

गोलीय खगोलशास्त्र (spherical astronomy) या स्थितीय खगोलशास्त्र (positional astronomy) खगोलशास्त्र की वह शाखा है जिसमें खगोलीय वस्तुओं का किसी विशेष समय, तिथि या पृथ्वी पर स्थित स्थान पर खगोलीय गोले में स्थान अनुमानित करा जाता है। यह अध्ययन की शाखा गोलीय ज्यामिति के सिद्धांतों व विधियों और खगोलमिति की मापन-कलाओं पर निर्भर है। ऐतिहासिक दृष्टि से गोलीय खगोलशास्त्र को पूरे खगोलशास्त्र की प्राचीनतम शाखा माना जा सकता है क्योंकि धार्मिकज्योतिषसमयानुमान और दिक्चालन (नैविगेशन) कार्यों के लिये मानव आकाश में तारोंतारामंडलोंग्रहोंसूर्य व चंद्रमा की स्थिति को ग़ौर से जाँचता-समझता रहा है। अकाश में खगोलीय वस्तुओं के स्थानों को गणितीय रूप से समझने के विज्ञान को खगोलमिति (astronomy) कहते हैं।[1]

काल्पनिक खगोलीय गोले में घूर्णन करती पृथ्वी। चित्र में तारे (श्वेत), सूर्यपथ (लाल) और भूमध्यीय निर्देशांक प्रणाली की दाएँ आरोहण व दिक्पात की रेखाएँ (हरी) दिखाई गई हैं।
खगोलीय गोले के बाहर से दायाँ आरोहण (right ascension, नीला) व दिक्पात (declination, हरा)

निर्देशांक प्रणालियाँ संपादित करें

गोलीय खगोलशास्त्र के प्राथमिक तत्व निर्देशांक प्रणालियाँ (coordinate systems) और समय हैं। अकाश में वस्तुओं के निर्देशांक भूमध्यीय निर्देशांक प्रणाली के अनुसार तय किये जाते हैं जिसमें पृथ्वी की भूमध्य रेखा को कल्पित रूप से उभारकर खगोलीय गोले पर भी खेंचा जाता है। इस प्रणाली में किसी भी आकाशीय वस्तु का स्थान उसके दाएँ आरोहण (α, right ascension) और दिक्पात (δ, declination) से निर्धारित हो जाती है। फिर अक्षांश (लैटिट्यूड) और समय के प्रयोग से उस वस्तु का क्षितिजीय निर्देशांक प्रणाली में स्थान अनुमानित करा जा सकता है, जो ऊँचाई (altitude) और दिगंश (azimuth) नामक दो राशियों द्वारा व्यक्त करा जाता है।[2]

सूचीपत्र, पंचांग व 

बाल वनिता महिला आश्रम

तारामंडलसंपादित करें

किसी वर्ष की तारों व गैलेक्सियों जैसी खगोलीय वस्तुओं के निर्देशांकों की तालिका तारा सूचीपत्र (star catalog) में मिलती हैं। अयन (precession) और डोलन (nutation) के प्रभाव समय के साथ-साथ इन निर्देशांकों को धीरे-धीरे बदलते रहते हैं और इसलिए कालक्रमानुसार नये तारा सूचीपत्र प्रकाशित करे जाते हैं। सूरज और ग्रहों की आकाश में स्थिति निर्धारित करने के लिये पंचांग (ephemeris) प्राचीनकाल से ही बनते आ रहे हैं, जिनमें यह लिखा जाता है कि किसी विशेष समय पर कोई खगोलीय वस्तु आकाश में किस स्थान पर नज़र आएगी।

मानव आँख बिना किसी दूरबीन के लगभग ६००० तारे पहचानने में सक्षम हैं जिनमें से आधे किसी भी समय पर क्षितिज के नीचे और दृष्टि से बाहर होते हैं। आधुनिक तारा-तालिकाओं में खगोलीय गोले को ८८ तारामंडलों में बांटा गया है और हर तारा किसी तारामंडल क्षेत्र का हिस्सा बनाया गया है। आधुनिक काल में ध्रुव तारा (Polaris) हमेशा ही पृथ्वी उत्तरी ध्रुव के लगभग ऊपर स्थित होता है।[3]

इन्हें भी देखेंसंपादित करें

सन्दर्भसंपादित करें

  1.  Robin M. Green, Spherical Astronomy, 1985, Cambridge University Press, ISBN 0-521-31779-7
  2.  William M. Smart, edited by Robin M. Green, Textbook on Spherical Astronomy, 1977, Cambridge University Press, ISBN 0-521-29180-1
  3.  "Universe," William J. Kaufmann and Roger A. Freedman, W.H. Freeman & Company, 1999, ISBN 96734956... Actually, the unaided human eye can detect only about 6000 stars ... The entire sky is divided up into a total of 88 constellations of different shapes and sizes ...

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घरेलू बिजली कनेक्शन कैसे ले पूरी जानकारी By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦घरेलू बिजली कनेक्शन कैसे ले how to apply for domestic electricity connection in hindi : घर में बिजली का उपयोग करने के लिए घरेलु बिजली कनेक्शन लगवाया जाता है। ये जरुरत के अनुसार LT या HT connection हो सकता है। ज्यादातर लोग सिंगल फेज ही घर में इस्तेमाल करते है। लेकिन अधिकांश लोग नहीं जानते है कि घरेलू बिजली कनेक्शन कैसे लिया जाता है, इसके लिए आवेदन कैसे किया जाता है ? इसीलिए हमने यहाँ सरल भाषा में इसकी पूरी जानकारी दे रहे है।घरेलु बिजली कनेक्शन लगवाने के लिए आपको ये जानना जरुरी है कि घरेलु कनेक्शन क्या होते है ? इसके लिए कौन कौन से डॉक्यूमेंट की आवश्यकता पड़ती है और इसके लिए आवेदन कैसे करते है ? क्योंकि बिना इसके जाने आपको कनेक्शन मिलने में परेशानी आएगी। बिजली वितरण कंपनियों ने घरेलु कनेक्शन देने के लिए निर्धारित मापदंड और प्रक्रिया तय किये है। इसे जानना आपके लिए काफी जरुरी है। तो चलिए बिना टाइम गवांयें शुरू करते है।घरेलू-बिजली-कनेक्शनविषय - सूची छुपाएँ घरेलू बिजली कनेक्शन कैसे ले ?घरेलू बिजली कनेक्शन क्या है ?घरेलू बिजली कनेक्शन के लिए क्या क्या डॉक्यूमेंट चाहिए ?घरेलू बिजली कनेक्शन के नियमघरेलू बिजली कनेक्शन के लिए आवेदन कैसे करें ?घरेलू बिजली कनेक्शन के लिए ऑनलाइन अप्लाई कैसे करें ?घरेलू बिजली कनेक्शन कैसे ले ?घरेलु बिजली कनेक्शन (Domestic Connection) लेना काफी आसान है। क्योंकि ये अधिकांश LT कनेक्शन होते है। इसके कारण ज्यादा डॉक्यूमेंट की मांग नहीं किया जाता है। आपको निर्धारित आवेदन फॉर्म को भरकर जमा करना होता है। इसके बाद आपके घर मीटर लग जायेगा। घरेलू बिजली कनेक्शन लगवाने की पूरी प्रक्रिया को हमने नीचे एक एक करके बताया है। आप इसे ध्यान से पढ़ें। चलिए सबसे पहले जानते है कि घरेलू बिजली कनेक्शन क्या है ?घरेलू बिजली कनेक्शन क्या है ?घर में सामान्य उपयोग के लिए जैसे – बल्ब, पंखा, कूलर, एयर कंडीशनर (AC), टीवी, फ्रीज़, घरेलु पानी पम्प आदि के उद्देश्य से उपयोग किये जाने वाले बिजली को घरेलु कनेक्शन कहा जाता है। घरेलु कनेक्शन में व्यावसायिक उपयोग की अनुमति नहीं दिया जाता है। इसमें सिंगल फेज की जरुरत ज्यादा पड़ती है। लेकिन जरुरत के अनुसार 3 फेज का कनेक्शन भी लगवाते है।घरेलू बिजली कनेक्शन के लिए क्या क्या डॉक्यूमेंट चाहिए ?घरेलु बिजली कनेक्शन लगवाने के लिए ज्यादा डॉक्युमेंट की जरुरत नहीं पड़ती है। फिर भी जो चीजें अनिवार्य है उसे आप नीचे लिस्ट में देख सकते है –नई बिजली कनेक्शन के लिए आवेदन फॉर्म लगेगा।एग्रीमेंट की कॉपी लगेगाशपथ पत्र लगेगाजिस जगह कनेक्शन लगता है उसका पेपर लगेगाराशन कार्डआधार कार्डपासपोर्ट साइज फोटोघरेलू बिजली कनेक्शन के नियमघरेलु बिजली कनेक्शन लगवाने के लिए कोई कठोर नियम नहीं बनाये गए है। लेकिन आपको इसके दिशा निर्देश के अनुसार ही कनेक्शन मिलता है। इसे आप नीचे पढ़ सकते है –नया बिजली कनेक्शन बिना मीटर के नहीं दिया जाएगा।बिजली मीटर डिजिटल रहेगा।आवेदक मूल निवासी होना चाहिए।जहाँ कनेक्शन लगवाना है उसका पेपर होना चाहिए।प्रतिमाह बिजली बिल का भुगतान करना होगा।बिजली बिल नहीं पटाने की स्थिति में विभाग कभी भी आपका कनेक्शन काट सकता है।घरेलु कनेक्शन का उपयोग व्यावसायिक कार्य हेतु नहीं किया जा सकेगा।उपभोक्ता ऑनलाइन या ऑफलाइन बिल भुगतान कर सकेंगे।घरेलू बिजली कनेक्शन के लिए आवेदन कैसे करें ?घरेलु बिजली कनेक्शन हेतु आवेदन करना बहुत आसान है। इसके लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों सुविधा मौजूद है। चलिए सबसे पहले ऑफलाइन प्रक्रिया के बारे में जानते है।सबसे पहले घरेलु बिजली कनेक्शन का आवेदन फॉर्म प्राप्त करें। ये ऑनलाइन अपने बिजली कंपनी की आधिकारिक वेबसाइट से डाउनलोड कर सकते है। या आप बिजली ऑफिस या किसी स्टेशनरी से भी प्राप्त कर सकते है।आवेदन फॉर्म मिल जाने के बाद इसे ध्यान से भरें। इसमें आवेदक का नाम और पता ध्यान से लिखें। इसमें बिजली का लोड विवरण भी भरना अनिवार्य है।आवेदन फॉर्म के साथ अनिवार्य सभी दस्तावेज की फोटोकॉपी भी जरूर लगाएं।आवेदन फॉर्म भरने के बाद इसे सम्बंधित बिजली ऑफिस में सम्बंधित अधिकारी के पास जमा कर दें।आवेदन जमा करने के बाद उसकी पावती लेना ना भूलें।आवेदन की जाँच उपरान्त आपके घर मीटर लगाया जायेगा। इसके साथ ही नई बिजली कनेक्शन भी आपके घर जोड़ा जायेगा।घरेलू बिजली कनेक्शन के लिए ऑनलाइन अप्लाई कैसे करें ?आप घर बैठे भी घरेलू बिजली कनेक्शन के लिए अप्लाई कर सकते है। सभी बिजली कंपनियों ने इसकी सुविधा प्रदान किया हुआ है। चलिए इसकी प्रक्रिया को भी समझते है।सबसे पहले बिजली वितरण कंपनी की आधिकारिक वेबसाइट में जाना होगा।इसके बाद वेबसाइट में दिए गए Online New Connection ऑप्शन को चुनें।इसके बाद स्क्रीन पर आपसे मांगी गई सभी डिटेल्स को ध्यान से भरें।फिर सम्बंधित दस्तावेज को अपलोड करें।नई कनेक्शन के लिए लगने वाले चार्ज को ऑनलाइन बैंकिंग, क्रेडिट कार्ड या डेबिट कार्ड में माध्यम से पेमेंट करें।इसके बाद स्क्रीन पर रिसीप्ट मिलेगा। इसे ध्यान से सुरक्षित करके रख लें।आपके आवेदन की जाँच उपरांत बिजली विभाग आपके घर मीटर और नई कनेक्शन लगा देगा।इसे पढ़ें – कमर्शियल बिजली कनेक्शन कैसे ले पूरी जानकारीसारांश : घरेलू बिजली कनेक्शन कैसे ले, इसकी पूरी जानकारी स्टेप By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦स्टेप जानकारी यहाँ बताया गया है। अब कोई भी व्यक्ति बहुत आसानी से अपने घर में नई कनेक्शन लगवा पायेगा। अगर कनेक्शन लेने में आपको कोई परेशानी आये या इससे सम्बंधित आपके मन में कोई सवाल हो तो नीचे कमेंट बॉक्स में हमें बता सकते है। हम आपकी पूरी मदद करेंगे।हमें उम्मीद है कि नई बिजली कनेक्शन लेने की जानकारी आपको पसंद आया होगा। आप चाहे तो इस जानकरी को शेयर कर सकते है। इस वेबसाइट पर हम बिजली बिल से सम्बंधित सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करते है। अगर आप ऐसे ही नई नई जानकारी और लेटेस्ट अपडेट 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75वेबसाइट www.kanyakumari.tn.nic.inविवरणसंपादित करेंकन्याकुमारी हिन्द महासागर, बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर का संगम स्थल है, जहां भिन्न सागर अपने विभिन्न रंगो से मनोरम छटा बिखेरते हैं। भारत के सबसे दक्षिण छोर पर बसा कन्याकुमारी वर्षो से कला, संस्कृति, सभ्यता का प्रतीक रहा है। भारत के पर्यटक स्थल के रूप में भी इस स्थान का अपना ही महत्च है। दूर-दूर फैले समुद्र के विशाल लहरों के बीच यहां का सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा बेहद आकर्षक लगता हैं। समुद्र बीच पर फैले रंग बिरंगी रेत इसकी सुंदरता में चार चांद लगा देता है।इतिहाससंपादित करेंकन्याकुमारी दक्षिण भारत के महान शासकों चोल, चेर, पांड्य के अधीन रहा है। यहां के स्मारकों पर इन शासकों की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। इस जगह का नाम कन्‍याकुमारी पड़ने के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने असुर बानासुरन को वरदान दिया था कि कुंवारी कन्या के अलावा किसी के हाथों उसका वध नहीं होगा। प्राचीन काल में भारत पर शासन करने वाले राजा भरत को आठ पुत्री और एक पुत्र था। भरत ने अपना साम्राज्य को नौ बराबर हिस्सों में बांटकर अपनी संतानों को दे दिया। दक्षिण का हिस्सा उसकी पुत्री कुमारी को मिला। कुमारी को शक्ति देवी का अवतार माना जाता था। कुमारी ने दक्षिण भारत के इस हिस्से पर कुशलतापूर्वक शासन किया। उसकी ईच्‍छा थी कि वह शिव से विवाह करें। इसके लिए वह उनकी पूजा करती थी। शिव विवाह के लिए राजी भी हो गए थे और विवाह की तैयारियां होने लगीं थी। लेकिन नारद मुनि चाहते थे कि बानासुरन का कुमारी के हाथों वध हो जाए। इस कारण शिव और देवी कुमारी का विवाह नहीं हो पाया। इस बीच बानासुरन को जब कुमारी की सुंदरता के बारे में पता चला तो उसने कुमारी के समक्ष शादी का प्रस्ताव रखा। कुमारी ने कहा कि यदि वह उसे युद्ध में हरा देगा तो वह उससे विवाह कर लेगी। दोनों के बीच युद्ध हुआ और बानासुरन को मृत्यु की प्राप्ति हुई। कुमारी की याद में ही दक्षिण भारत के इस स्थान को कन्याकुमारी कहा जाता है। माना जाता है कि शिव और कुमारी के विवाह की तैयारी का सामान आगे चलकर रंग बिरंगी रेत में परिवर्तित हो गया।दर्शनीय स्थलसंपादित करेंकन्याकुमारी अम्मन मंदिरसंपादित करेंसागर के मुहाने के दाई ओर स्थित यह एक छोटा सा मंदिर है जो पार्वती को समर्पित है। मंदिर तीनों समुद्रों के संगम स्थल पर बना हुआ है। यहां सागर की लहरों की आवाज स्वर्ग के संगीत की भांति सुनाई देती है। भक्तगण मंदिर में प्रवेश करने से पहले त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाते हैं जो मंदिर के बाई ओर 500 मीटर की दूरी पर है। मंदिर का पूर्वी प्रवेश द्वार को हमेशा बंद करके रखा जाता है क्योंकि मंदिर में स्थापित देवी के आभूषण की रोशनी से समुद्री जहाज इसे लाइटहाउस समझने की भूल कर बैठते है और जहाज को किनारे करने के चक्‍कर में दुर्घटनाग्रस्‍त हो जाते है।गांधी स्मारकसंपादित करेंगाँधी मंडपयह स्मारक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को समर्पित है। यही पर महात्मा गांधी की चिता की राख रखी हुई है। इस स्मारक की स्थापना 1956 में हुई थी। महात्मा गांधी 1937 में यहां आए थे। उनकी मृत्‍यु के बाद 1948 में कन्याकुमारी में ही उनकी अस्थियां विसर्जित की गई थी। स्मारक को इस प्रकार डिजाइन किया गया है कि महात्मा गांधी के जन्म दिवस पर सूर्य की प्रथम किरणें उस स्थान पर पड़ती हैं जहां महात्मा की राख रखी हुई है।तिरूवल्लुवर मूर्तिसंपादित करें133 फीट ऊंचा संत तिरुवल्लुवर मूर्तितिरुक्कुरुल की रचना करने वाले अमर तमिल कवि तिरूवल्लुवर की यह प्रतिमा पर्यटकों को बहुत लुभाती है। 38 फीट ऊंचे आधार पर बनी यह प्रतिमा 95 फीट की है। इस प्रतिमा की कुल उंचाई 133 फीट है और इसका वजन 2000 टन है। इस प्रतिमा को बनाने में कुल 1283 पत्थर के टुकड़ों का उपयोग किया गया था।विवेकानंद रॉक मेमोरियलसंपादित करेंसमुद्र में बने इस स्थान पर बड़ी संख्या में पर्यटक आते है। इस पवित्र स्थान को विवेकानंद रॉक मेमोरियल कमेटी ने 1970 में स्वामी विवेकानंद के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए बनवाया था। इसी स्थान पर स्वामी विवेकानंद गहन ध्यान लगाया था। इस स्थान को श्रीपद पराई के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार इस स्थान पर कन्याकुमारी ने भी तपस्या की थी। कहा जाता है कि यहां कुमारी देवी के पैरों के निशान मुद्रित हैं। यह स्मारक विश्व प्रसिद्ध है।सुचीन्द्रमसंपादित करेंमुख्य लेख: सुचीन्द्रमयह छोटा-सा गांव कन्याकुमारी से लगभग 12 किमी दूर स्थित है। यहां का थानुमलायन मंदिर काफी प्रसिद्ध है। मंदिर में स्‍थापित हनुमान की छह मीटर की उंची मूर्ति काफी आकर्षक है। मंदिर के मुख्य गर्भगृह में ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश जोकि इस ब्रह्मांड के रचयिता समझे जाते है उनकी मूर्ति स्‍थापित है। यहां नौवीं शताब्दी के प्राचीन अभिलेख भी पाए गए हैं। सुचीन्द्रम शक्तिपीठ हिन्दूओं के लिए प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर भारत के तमिलनाडु राज्य, कन्याकुमारी में स्थित है। माना जाता है कि सुचिंद्रम में ‘सुची’ शब्द संस्कृत से लिया गया है जिसका अर्थ है ‘शुद्ध’ होना। सुचीन्द्रम शक्ति पीठ को ठाँउमालयन या स्तानुमालय मंदिर भी कहा जाता है।यह मंदिर सात मंजिला है जिसका सफेद गोपुरम काफी दूर से दिखाई देता है। इस मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी में किया गया था। सुचीन्द्रम शक्तिपीठ, मंदिर में बनी हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर का प्रवेश द्वार लगभग 24 फीट उंचा है जिसके दरवाजे पर सुंदर नक्काशी की गई है। यह मंदिर बड़ी संख्या में वैष्णव और सैवियों दोनों को आकर्षित करता है। मंदिर परिसर में विभिन्न देवी-देवताओं के लिए लगभग 30 मंदिर है जिसमें पवित्र स्थान में बड़ा लिंगम, आसन्न मंदिर में विष्णु की मूर्ति और उत्तरी गलियारे के पूर्वी छोर पर हनुमान की एक बड़ी मूर्ति है। यह मंदिर हिंदू धर्म के लगभग सभी देवी-देवताओं का प्रतिनिधित्व करता है।मंदिर के मुख्य देवता भगवान शिव, भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा को एक ही रूप में स्तरनुमल्याम कहा जाता है। स्तरनुमल्याम तीन देवताओं को दर्शाता है जिसमें ‘स्तानु’ का अर्थ ‘शिव’ है, ‘माल’ का अर्थ ‘विष्णु’ है और ‘आयन’ का अर्थ ‘ब्रह्मा’ है। भारत के उन मंदिरों में से एक है जिसमें त्रीमूर्ति व तीनों देवताओं की पूजा एक मंदिर में की जाती है। यह मंदिर माता के 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर में शक्ति को नारायणी के रूप पूजा जाता है और भैरव को संहार भैरव के रूप में पूजा जाता है। पुराणों के अनुसार जहाँ-जहाँ सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाते हैं। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं।पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती ने उनके पिता दक्षेस्वर द्वारा किये यज्ञ कुण्ड में अपने प्राण त्याग दिये थे, तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण चक्कर लगा रहे थे इसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था, जिसमें से सती की ऊपर के दांत इस स्थान पर गिरे थे। पौराणिक कथा के अनुसार देवों के राजा इन्द्र को महर्षि गौतम द्वारा दिये गए अभिशाप से इस स्थान पर मुक्ति मिली थी।सुचीन्द्रम शक्तिपीठ में सभी त्यौहार मनाये जाते है विशेष कर शिवरात्रि, दुर्गा पूजा और नवरात्र के त्यौहार पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। लेकिन दो प्रमुख त्यौहार है, जो इस मंदिर का प्रमुख आकर्षण का केन्द्र हैं, ‘सुचंद्रम मर्गली त्यौहार’ और ‘रथ यात्रा’ हैं। इन त्यौहारों के दौरान, कुछ लोग भगवान की पूजा के प्रति सम्मान और समर्पण के रूप में व्रत (भोजन नहीं खाते) रखते हैं। त्यौहार के दिनों में मंदिर को फूलो व लाईट से सजाया जाता है। मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण श्रद्धालुओं के दिल और दिमाग को शांति प्रदान करता है।कन्याकुमारी में घूमने की जगह: विवेकानन्द शिला , विवेकानन्द की मूर्ति एवं विवेकानन्द मठनागराज मंदिरसंपादित करेंकन्याकुमारी से 20 किमी दूर नगरकोल का नागराज मंदिर नाग देव को समर्पित है। यहां भगवान विष्णु और शिव के दो अन्य मंदिर भी हैं। मंदिर का मुख्य द्वार चीन की बुद्ध विहार की कारीगरी की याद दिलाता है।पद्मनाभपुरम महलसंपादित करेंमुख्य लेख: पद्मनाभपुरमपद्मनाभपुरम महल की विशाल हवेलियां त्रावनकोर के राजा द्वारा बनवाया हैं। ये हवेलियां अपनी सुंदरता और भव्यता के लिए जानी जाती हैं। कन्याकुमारी से इनकी दूरी 45 किमी है। यह महल केरल सरकार के पुरातत्व विभाग के अधीन हैं।कोरटालम झरनासंपादित करेंयह झरना 167 मीटर ऊंची है। इस झरने के जल को औषधीय गुणों से युक्त माना जाता है। यह कन्याकुमारी से 137 किमी दूरी पर स्थित है।तिरूचेन्दूरसंपादित करें85 किमी दूर स्थित तिरूचेन्दूर के खूबसूरत मंदिर भगवान सुब्रमण्यम को समर्पित हैं। बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित इस मंदिर को भगवान सुब्रमण्यम के 6 निवासों में से एक माना जाता है।उदयगिरी किलासंपादित करेंकन्याकुमारी से 34 किमी दूर यह किला राजा मरतड वर्मा द्वारा 1729-1758 ई. दौरान बनवाया गया था। इसी किले में राजा के विश्वसनीय यूरोपियन दोस्त जनरल डी लिनोय की समाधि भी है।चित्रदीर्घासंपादित करेंसूर्योदय में विवेकानंद स्मारक और वल्लुवर मूर्ति फ्रान्सिस ज़ेवियर गिरजा सूर्योदय में विवेकानंद स्मारक शिला वट्टकोट्टई फोर्ट से पश्चिमी घाट का दृश्य रात्रि में 133 फुट ऊँची तिरुवल्लुवर मूर्ति पद्मनाभपुरम महल चितराल जैन स्थापत्य मातूर जलवाही (एक्वेडक्ट) तीरपरप्पु जलप्रपात तेंगीपट्टिनम नदीमुख नागराज मंदिर, नागरकोविल उदयगिरि दुर्ग से पहाड़ियों का दृश्य सुचींद्रम मंदिर, नागरकोविल के समीप मुट्टोम गाँव कीरीपरई के वन में जलधारा पेचीपरई बाँध, पृष्ठभूमि में पश्चिमी घाट तीरपरप्पु मंदिर, तीरपरप्पु जलप्रपात के समीप तिरुवट्टार का आदि केशव मंदिर - भीतरी मंदिर 2000 वर्ष से अधिक पुरातन है मुट्टोम तट के पास दृश्य चितराल के पहाड़ी-मंदिर पर कला व तक्षित-शिला पेचीपरई में रबड़ कृषि कन्याकुमारी के समीप मारुतिवाड़ मलई - मान्यता है कि सीता की सहायता करने लंका को जाते हुए हनुमान ने यहाँ पहाड़ धर दिया था कन्याकुमारी के समीप ग्राम-दृश्य वट्टकोट्टई दुर्ग से सागर-दृश्य तीर्थयात्रि कन्याकुमारी में त्रिसागर-मिलन पर स्नान करते हुए नागरकोविल-तिरुवनंतपुरम राजमार्ग के रास्ते में कमल-ताल वट्टकोट्टई दुर्ग के पास काले रेत का बालूतट (बीच) कीरीपरई के समीप वट्टपरई मुट्टोम प्रकाशस्तम्भ (लाइटहाउस), सौ वर्षों से भी पुराना रात्रि में गाँधी मंडपम, कन्याकुमारी कन्याकुमारी के पास कोवलम गाँव तिरुपरप्पु जलप्रपात मुट्टोम तट उदयगिरि दुर्ग में कप्तान दे लान्नोय की कब्र सुनामी स्मारकBy समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦आवागमनसंपादित करेंवायुमार्ग-नजदीकी एयरपोर्ट तिरूअनंतपुरम है जो कन्याकुमारी से 89 किलोमीटर दूर है। यहां से बस या टैक्सी के माध्यम से कन्याकुमारी पहुंचा जा सकता है। यहां से लक्जरी कार भी किराए पर उपलब्ध हैं।रेलमार्ग-कन्याकुमारी चैन्नई सहित भारत के प्रमुख शहरों से रेल मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। चैन्नई से कन्याकुमारी एक्सप्रेस द्वारा यहां जाया जा सकता है।सड़क मार्ग-बस द्वारा कन्याकुमारी जाने के लिए त्रिची, मदुरै, चैन्नई, तिरूअनंतपुरम और तिरूचेन्दूर से नियमित बस सेवाएं हैं। तमिलनाड़ पर्यटन विभाग कन्याकुमारी के लिए सिंगल डे बस टूर की व्यवस्था भी करता है। राष्ट्रीय राजमार्ग 44 का दक्षिणी छोर यहाँ है और यह उत्तर दिशा में जम्मू और कश्मीर तक जाता है।भ्रमण समयसंपादित करेंसमुद्र के किनारे होने के कारण कन्याकुमारी में साल भर मनोरम वातावरण रहता है। यूं तो पूरा साल कन्याकुमारी जाने लायक होता है लेकिन फिर भी पर्यटन के लिहाज से अक्टूबर से मार्च की अवधि सबसे बेहतर मानी जाती है।खरीददारीसंपादित करेंपर्यटक अक्सर यहां से विभिन्न रंगों के रेत के पैकेट खरीदतें हैं। यहां से सीप और शंख के अलावा प्रवाली शैलभित्ती के टुकड़ों की खरीददारी की जा सकती है। साथ ही केरल शैली की नारियल जटाएं और लकड़ी की हैंडीक्राफ्ट भी खरीदी जा सकती हैं।इन्हें भी देखेंसंपादित करेंकन्याकुमारी ज़िलासन्दर्भसंपादित करें↑ "Lonely Planet South India & Kerala," Isabella Noble et al, Lonely Planet, 2017, ↑ "Tamil Nadu, Human Development Report," Tamil Nadu Government, Berghahn Books, 2003, ISBN Last edited 4 months ago By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦RELATED PAGESकन्याकुमारी जिलातमिलनाडु का जिलानैना देवी मंदिर, हिमाचल प्रदेश By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦मरुंगूरसामग्री CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उल्लेख ना किया गया हो।गोपनीयता नीति उपयोग की शर्तेंडेस्कटॉप