MahabharatIf Shri Krishna had wanted, he could have stopped the war of Mahabharata, yet why did he allow such a terrible massacre among the brothers?By social worker Vanita Kasani PunjabMahabharatAlways in everyone's mind
Mahabharat
श्री कृष्ण चाहते तो वो महाभारत का युद्ध रुकवा सकते थे, फिर भी उन्होंने भाईयों के बीच इतना भयानक नरसंहार क्यों होने दिया?
सबके मन में हमेशा यही प्रश्न घूमता है की क्या श्री कृष्ण महाभारत का युद्ध रुकवा सकते थे? भाईयों के बीच हुए रक्तपात को उन्होंने क्यों नहीं रोका? इतिहास हमेशा वीरता, युद्ध, शहादत, और खून खराबे को ही गौरवान्वित करता है
लेकिन हमे महाभारत के युद्ध के पीछे की सीख नही देख पा रहें हैं। क्युकी अगर महाभारत का युद्ध ना हुआ होता तो आगे चल कर ये आर्यावर्त तबाह हो गया होता और इस बात को कृष्ण बहुत अच्छी तरह जानते थे। आपको क्या लगता है की पांडव द्वारा पांच गांव की मांग का कौरवों द्वारा ठुकराया जाना और द्रोपदी का अपमान करना ही महाभारत युद्ध के कारण थे? जो कृष्ण खुद द्वारका और मथुरा के राजा थे क्या वो पांडवों को अपने राज्य में पांच गांव देकर युद्ध ना रोक लेते! पांडव इतने पराक्रमी थे की पूरे विश्व में कहीं भी आक्रमण करके किसी भी देश को जीत सकते थे। फिर भी उन्होंने कौरव से सिर्फ पांच गांव ही क्यों मांगे?
जब कौरव द्रोपदी का भरी सभा में अपमान कर रहे थे तो कृष्ण जी सिर्फ द्रोपदी की साड़ी का कपड़ा ही क्यों बड़ा कर रहे थे? वो चाहते तो दुस्साशन का गला उसी वक्त अपने चक्र से काट देते, पर उन्होंने ऐसा नहीं किया।
यह सब मुद्दा उन्होंने जानबूझ कर बनाया ताकि विश्व को एक सीख मिल सके। आपको लग रहा होगा की इतने लोगों की मृत्यु हुई इसमें क्या भला?
कृष्ण जी की लीला सिर्फ वो ही समझ सकते है फिर भी मैं थोड़ा समझाने की कोशिश करता हुं
ये सोचिए की कौरव अगर द्रोपदी को अपमानित कर रहे थे तो इसमें वो गलत थे लेकिन पांडवों ने अपनी पत्नी को किस मर्यादा के तहत जुए में दांव पर लगाया?
श्री कृष्ण ने इन्हीं सब बातों का मुद्दा बनाया और युद्ध के लिए प्रेरित किया। क्युकी धीरे धीरे ये कुरीतियां समाज में व्याप्त हो रहीं थी जो की उस वक्त के समाज और आने वाले भविष्य के लिए बहुत ही हानिकारक होती। अगर आप जुए को बुरा मानते है तो कौरव के साथ साथ पांडव भी गलत थे जो उन्होंने जुआ खेला। श्री कृष्ण के लिए ये कुरीतियां चिंता का विषय थी।
मानव इन भौतिकतावादी वस्तुओं में खो कर अपने धर्म, लक्ष्य और जिम्मेदारियों से भाग रहा था। अगर राजा ऐसे होंगे तो प्रजा भी ऐसी होगी और पथभ्रष्ट हो जाएगी। आपस में दुश्मनी बढ़ेगी, लड़ाई झगड़े होगें, सारी व्यवस्था ठप हो जाएगी और देश का अमन चैन खो जायेगा। लोग आपस में युद्ध करेंगे और भयानक अस्त्र शस्त्र का प्रयोग करेंगे। उस काल में लोग अस्त्र शस्त्र के लिए तपस्या करते थे, यज्ञ करते थे ताकि उनके पास उन्नत अस्त्र शस्त्र आ पाए। ऐसे उन्नत अस्त्र शस्त्र का प्रयोग युद्ध में होगा तो करोड़ों लोग मारे जायेंगे। और यही सब कृष्ण की चिंता का विषय था।
इसका मैं एक सटीक उदाहरण देता हूं, आप सोचिए अगर किसी हत्यारे को एक ए. के. 47 दे दिया जाए तो वो उससे लोगों की अंधाधुंध हत्या हो करेगा। जैसे पाकिस्तान या कोरिया जैसे देशों के पास परमाणु हथियार का होना। क्योंकि ये देश उस हथियार का उपयोग शक्ति प्रदर्शन और दूसरो को मारने में ही करेंगे। यही सब बाते कृष्ण को विवश कर रही थी उस वक्त, क्युकी उनको पता था की हर व्यक्ति अस्त्र शस्त्र की होड़ में लगा हुआ है और ये अंधी दौड़ सिर्फ विनाश की तरफ ही जाएगी। अर्जुन, कर्ण, दुर्धोयन, शकुनी, द्रोण, अस्वस्थामा आदि वीरों के पास अनेक प्रकार के अस्त्र थे जो पूरी दुनिया तबाह कर सकते थे।
इसीलिए उन्होंने महाभारत युद्ध रोकने की कोशिश नही की ताकि युद्ध भूमि में एक ही जगह पर ये सारे अस्त्र शस्त्र को नष्ट किया जा सके और आने वाली पीढ़ी को बचाया जा सके। इसके साथ ही आने वाली पीढ़ी को ये सीख भी मिलती की कुरीतियों से कैसे बचा जाए। महाभारत में दिखाया गया की किस तरह जुए से, स्त्री के अपमान से, घमंड से, अज्ञानता से, अस्त्र शस्त्र से बचा जाए। क्योंकि इन्ही सब कारणों से भाईयों के बीच में एक महायुद्ध हुआ और न जाने कितनी जाने गई। ये सब एक lesson की तरह था आने वाली पीढ़ी के लिए की ये सब नहीं करना चाहिए अन्यथा ऐसे ही परिणाम होगें।
श्री कृष्ण ने खुद युद्ध नही लड़ा जबकि पक्ष और विपक्ष में अति शूरवीर बैठे थे। पांडव और कौरव दोनों कृष्ण का साथ चाहते थे। क्युकी दोनों को पता था की कृष्ण के पास दोनों पक्षों से जायदा उन्नत अस्त्र शस्त्र है। जो पल भर में श्रृष्टि का विनाश कर सकते हैं। इसलिए कृष्ण ने किसी भी पक्ष से युद्ध ना करने का वचन दिया था। उस वक्त कौरव पांडव से भी उन्नत हथियार बर्बरीक के पास थे और ये बात कृष्ण को पता थी इसीलिए उन्होंने युद्ध के पहले ही बर्बरीक के अस्त्र शस्त्र चालाकी से नष्ट करवा दिए। उन्हे पता था की युद्ध के बाद अमन शांति रहेगी क्युकी रामायण युद्ध के 2000 साल बाद तक कोई भी बड़ा युद्ध नही हुआ और यही हाल महाभारत के बाद भी हुआ। महाभारत के 3300 वर्ष बाद तक शांति रही।
युद्ध के बाद भी कृष्ण जी ने बचे हुए काम पूरे किए। पांडव की जीत के बाद किसी भी युद्ध की आशंका खत्म हो गई और युद्ध के बाद अर्जुन अपना गांडीव चलाना भूल गए। आपने युद्ध के बाद कहीं भी अर्जुन के गांडीव के इस्तेमाल का उल्लेख नहीं सुना होगा। युद्ध के बाद कृष्ण ने धरती पर देवताओं के सभी पद खतम कर दिए और इस युद्ध के बाद ही सारे देवताओं का अस्तित्व धरती से खत्म हो गया। उसके बाद किसी भी देवता ने पृथ्वी पर जन्म नही लिया। बचे हुए दानवों को कृष्ण ने धरती से खत्म करवा दिया और देवताओं और दानवों के बीच चला आ रहा युद्ध भी खत्म हो गया। अब जो भी होना था वो मानवों के बीच ही होना था जिसका इतना अधिक प्रभाव धरती पर नहीं पड़ता क्युकी सारे महत्वपूर्ण अस्त्र शस्त्र खत्म हो चुके थे। अब सिर्फ बचे थे जनता और उनका राजा जो अपनी प्रजा को संभालने में सक्षम थे और हथियारों की दौड़ से अलग थे, क्योंकि उन लोगों ने महाभारत युद्ध का परिणाम देखा था।
आने वाले विश्व की शांति के लिए श्री कृष्ण ने युद्ध में गीता का उपदेश दिया, ताकि आने वाली पीढ़ी का भला हो सके। अब तक आपको समझ में आ चुका होगा की यदि श्री कृष्ण चाहते तो युद्ध ना होता। लेकिन श्री कृष्ण ने गीता में खुद ही कहा है की "हे पार्थ जो हो रहा है वो अच्छा हो रहा है, और जो होगा वो अच्छा होगा तो किसी भी हानि लाभ की चिंता छोड़कर तुम सिर्फ अपना काम करो"
जय श्री कृष्ण
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