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SunBy social worker Vanita Kasani PunjabA common star and the center of the solar systemRead in another languageTake careEditSurya, a star located in the center of the solar system, around which

सूर्य अथवा सूरज सौरमंडल के केन्द्र में स्थित एक तारा जिसके चारों तरफ पृथ्वी और सौरमंडल के अन्य अवयव घूमते हैं। सूर्य हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा पिंड है और उसका व्यास लगभग १३ लाख ९० हज़ार किलोमीटर है जो पृथ्वी से लगभग १०९ गुना अधिक है। [10] ऊर्जा का यह शक्तिशाली भंडार मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम गैसों का एक विशाल गोला है। परमाणु विलय की प्रक्रिया द्वारा सूर्य अपने केंद्र में ऊर्जा पैदा करता है। सूर्य से निकली ऊर्जा का छोटा सा भाग ही पृथ्वी पर पहुँचता है जिसमें से १५ प्रतिशत अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाता है, ३० प्रतिशत पानी को भाप बनाने में काम आता है और बहुत सी ऊर्जा पेड़-पौधे समुद्र सोख लेते हैं। [11] इसकी मजबूत गुरुत्वाकर्षण शक्ति विभिन्न कक्षाओं में घूमते हुए पृथ्वी और अन्य ग्रहों को इसकी तरफ खींच कर रखती है।
सूर्य
नासा की सौर गतिविधि वेधशाला द्वारा लिया गया २०१० में लिया गया सूर्य का एक चित्र
अवलोकन आंकड़े
पृथ्वी से
औसत दूरी
1.496×१०8 कि.मी
८.३१७ मि. (४९९ से.) प्रकाश की गति पर
प्रत्यक्ष चमक (V)−26.74 [1]
विशुद्ध परिमाण4.85 [2]
स्पेक्ट्रल वर्गीकरणG2V
धात्विकताZ = 0.0177 [3]
कोणीय आकार31.6′ – 32.7′ [4]
विशेषणसौर
कक्षीय विशेषताएं
मिल्की वे केन्द्र
से औसत दूरी
~2.5×१०17 कि.मी
26,000 प्रकाश वर्ष
आकाशगंगीय अंतराल(2.25–2.50)×108 
वेग~220 km/s
(आकाशगंगा के केंद्र की परिक्रमा)

~20 km/s
(तारकीय पड़ोस में अन्य सितारों की औसत गति के सापेक्ष)
भौतिक गुण
औसत व्यास1.392×१०6 कि.मी [1]
१०९ × पृथ्वी
भूमध्यीय व्यास6.955×१०5 कि.मी [5]
१०९ × पृथ्वी[5]
भूमध्यीय परिधि4.379×१०6 कि.मी [5]
१०९ × पृथ्वी[5]
सपाटकरण9×१०−6
सतही क्षेत्रफल6.0877×१०12 km2 [5]
11,990 × पृथ्वी[5]
आयतन1.412×१०18 km3 [5]
13,00,000 × पृथ्वी
द्रव्यमान1.9891×१०30 kg [1]
3,32,900 × Earth[5]
औसत घनत्व1.408×१०3 kg/m3 [1][5][6]
विभिन्न घनत्वकेन्द्र: 1.5×१०5 kg/m3
lower Photosphere: 2×१०−4 kg/m3
lower Chromosphere: 5×१०−6 kg/m3
Avg. Corona: 1×१०−12 kg/m3 [7]
भूमध्यीय सतही गुरुत्व274 m/s2 [1]
27.94 g
२८ × पृथ्वी[5]
पलायन वेग
(सतह से)
617.7 km/s [5]
५५ × पृथ्वी[5]
सतह का प्रभावी
तापमान
5,778 K [1]
कोरोना का
तापमान
~5×१०6 K
केन्द्र का
तापमान
~15.7×१०6 K [1]
चमक (Lsol)3.846×१०26 W [1]
~3.75×१०28 lm
~98 lm/W efficacy
औसत चमक (Isol)2.9×१०7 W•m−2•sr−1
परिक्रमा गुण
Obliquity7.25° [1]
(to the ecliptic)
67.23°
(to the galactic plane)
Right ascension
of North pole[8]
286.13°
19h 4min 30s
Declination
of North pole
+63.87°
63°52' North
Sidereal Rotation period
(at 16° latitude)
25.38 days [1]
25d 9h 7min 13s [8]
(भूमध्य रेखा पर)25.05 days [1]
(ध्रुवों पर)34.3 days [1]
घूर्णन वेग
(भूमध्य रेखा पर)
7.189×१०3 km/h [5]
फोटोस्फियर के घटक (भार अनुसार)
हाइड्रोजन73.46%[9]
हीलियम24.85%
ऑक्सीजन0.77%
कार्बन0.29%
लौह0.16%
गंधक0.12%
नियॉन0.12%
नाइट्रोजन0.09%
सिलिकॉन0.07%
मैग्नेशियम0.05%

सूर्य से पृथ्वी की औसत दूरी लगभग १४,९६,००,००० किलोमीटर या ९,२९,६०,००० मील है तथा सूर्य से पृथ्वी पर प्रकाश को आने में ८.३ मिनट का समय लगता है। इसी प्रकाशीय ऊर्जा से प्रकाश-संश्लेषण नामक एक महत्वपूर्ण जैव-रासायनिक अभिक्रिया होती है जो पृथ्वी पर जीवन का आधार है। यह पृथ्वी के जलवायु और मौसम को प्रभावित करता है। सूर्य की सतह का निर्माण हाइड्रोजनहिलियमलोहानिकेलऑक्सीजनसिलिकनसल्फरमैग्निसियमकार्बननियोनकैल्सियमक्रोमियम तत्वों से हुआ है। [12] इनमें से हाइड्रोजन सूर्य के सतह की मात्रा का ७४ % तथा हिलियम २४ % है।

इस जलते हुए गैसीय पिंड को दूरदर्शी यंत्र से देखने पर इसकी सतह पर छोटे-बड़े धब्बे दिखलाई पड़ते हैं। इन्हें सौर कलंक कहा जाता है। ये कलंक अपने स्थान से सरकते हुए दिखाई पड़ते हैं। इससे वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि सूर्य पूरब से पश्चिम की ओर २७ दिनों में अपने अक्ष पर एक परिक्रमा करता है। जिस प्रकार पृथ्वी और अन्य ग्रह सूरज की परिक्रमा करते हैं उसी प्रकार सूरज भी आकाश गंगा के केन्द्र की परिक्रमा करता है। इसको परिक्रमा करनें में २२ से २५ करोड़ वर्ष लगते हैं, इसे एक निहारिका वर्ष भी कहते हैं। इसके परिक्रमा करने की गति २५१ किलोमीटर प्रति सेकेंड है।

यह वीडियो सौर गतिशीलता वेधशालाEn की छवियां लेता है और ढांचे की दृश्यमानता बढ़ाने के लिए अतिरिक्त प्रक्रियाएं लागू करता है। इस वीडियो में यह प्रसंग 25 सितम्बर 2011 की 24 घंटो की गतिविधि प्रस्तुत करता हैं।

सूर्य एक G-टाइप मुख्य अनुक्रम तारा है जो सौरमंडल के कुल द्रव्यमान का लगभग 99.86% समाविष्ट करता है। करीब नब्बे लाखवें भाग के अनुमानित चपटेपन के साथ, यह करीब-करीब गोलाकार है,[13] इसका मतलब है कि इसका ध्रुवीय व्यास इसके भूमध्यरेखीय व्यास से केवल 10 किमी से अलग है। [14] जैसा कि सूर्य प्लाज्मा का बना हैं और ठोस नहीं है, यह अपने ध्रुवों पर की अपेक्षा अपनी भूमध्य रेखा पर ज्यादा तेजी से घूमता है। यह व्यवहार अंतरीय घूर्णन के रूप में जाना जाता है और सूर्य के संवहन एवं कोर से बाहर की ओर अत्यधिक तापमान ढलान के कारण पदार्थ की आवाजाही की वजह से हुआ है। यह सूर्य के वामावर्त कोणीय संवेग के एक बड़े हिस्से का वहन करती है, जैसा क्रांतिवृत्त के उत्तरी ध्रुव से देखा गया और इस प्रकार कोणीय वेग पुनर्वितरित होता है। इस वास्तविक घूर्णन की अवधि भूमध्य रेखा पर लगभग 25.6 दिन और ध्रुवों में 33.5 दिन की होती है। हालांकि, सूर्य की परिक्रमा के साथ ही पृथ्वी के सापेक्ष हमारी लगातार बदलती स्थिति के कारण इस तारे का अपनी भूमध्य रेखा पर स्पष्ट घूर्णन करीबन 28 दिनों का है। [15] इस धीमी गति के घूर्णन का केन्द्रापसारक प्रभाव सूर्य की भूमध्य रेखा पर के सतही गुरुत्वाकर्षण से 1.8 करोड़ गुना कमजोर है। ग्रहों के ज्वारीय प्रभाव भी कमजोर है और सूर्य के आकार को खास प्रभावित नहीं करते है। [16]

सूर्य एक पॉपुलेशन I या भारी तत्व युक्त सितारा है। [17] सूर्य का यह गठन एक या एक से अधिक नजदीकी सुपरनोवाओं से निकली धनुषाकार तरंगों द्वारा शुरू किया गया हो सकता है। [18] ऐसा तथाकथित पॉपुलेशन II (भारी तत्व-अभाव) सितारों में इन तत्वों की बहुतायत की अपेक्षा, सौरमंडल में भारी तत्वों की उच्च बहुतायत ने सुझाया है, जैसे कि सोना और यूरेनियम। ये तत्व, किसी सुपरनोवा के दौरान ऊष्माशोषी नाभकीय अभिक्रियाओं द्वारा अथवा किसी दूसरी-पीढ़ी के विराट तारे के भीतर न्यूट्रॉन अवशोषण के माध्यम से रूपांतरण द्वारा, उत्पादित किए गए हो सकने की सर्वाधिक संभावना है। [17]

सूर्य की चट्टानी ग्रहों के माफिक कोई निश्चित सीमा नहीं है। सूर्य के बाहरी हिस्सों में गैसों का घनत्व उसके केंद्र से बढ़ती दूरी के साथ तेजी से गिरता है। [19] बहरहाल, इसकी एक सुपारिभाषित आंतरिक संरचना है जो नीचे वर्णित है। सूर्य की त्रिज्या को इसके केंद्र से लेकर प्रभामंडल के किनारे तक मापा गया है। सूर्य का बाह्य प्रभामंडल दृश्यमान अंतिम परत है। इसके उपर की परते नग्न आंखों को दिखने लायक पर्याप्त प्रकाश उत्सर्जित करने के लिहाज से काफी ठंडी या काफी पतली है। [20] एक पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान, तथापि, जब प्रभामंडल को चंद्रमा द्वारा छिपा लिया गया, इसके चारों ओर सूर्य के कोरोना का आसानी से देखना हो सकता है।

सूर्य का आंतरिक भाग प्रत्यक्ष प्रेक्षणीय नहीं है। सूर्य स्वयं ही विद्युत चुम्बकीय विकिरण के लिए अपारदर्शी है। हालांकि, जिस प्रकार भूकम्प विज्ञान पृथ्वी के आंतरिक गठन को प्रकट करने के लिए भूकंप से उत्पन्न तरंगों का उपयोग करता है, सौर भूकम्प विज्ञान En का नियम इस तारे की आंतरिक संरचना को मापने और दृष्टिगोचर बनाने के लिए दाब तरंगों ( पराध्वनी) का इस्तेमाल करता है। [21] इसकी गहरी परतों की खोजबीन के लिए कंप्यूटर मॉडलिंग भी सैद्धांतिक औजार के रूप में प्रयुक्त हुए है।

कोर

सूर्य का गठन

सूर्य का कोर इसके केन्द्र से लेकर सौर त्रिज्या के लगभग 20-25% तक विस्तारित माना गया है। [22] इसका घनत्व 150 ग्राम/सेमी3 तक[23][24] (पानी के घनत्व का लगभग 150 गुना) और तापमान 15.7 करोड़ केल्विन के करीब का है। [24] इसके विपरीत, सूर्य की सतह का तापमान लगभग 5,800 केल्विन है। सोहो मिशन डेटा के हाल के विश्लेषण विकिरण क्षेत्र के बाकी हिस्सों की तुलना में कोर के तेज घूर्णन दर का पक्ष लेते है। [22] सूर्य के अधिकांश जीवन में, ऊर्जा p–p (प्रोटॉन-प्रोटॉन) श्रृंखलाEn कहलाने वाली एक चरणबद्ध श्रृंखला के माध्यम से नाभिकीय संलयन द्वारा उत्पादित हुई है; यह प्रक्रिया हाइड्रोजन को हीलियम में रुपांतरित करती है। [25] सूर्य की उत्पादित ऊर्जा का मात्र 0.8% CNO चक्र En से आता है। [26]

सूर्य में कोर अकेला ऐसा क्षेत्र है जो संलयन के माध्यम से तापीय ऊर्जा की एक बड़ी राशि का उत्पादन करता है; 99% शक्ति सूर्य की त्रिज्या के 24% के भीतर उत्पन्न हुई है, तथा त्रिज्या के 30% द्वारा संलयन लगभग पूरी तरह से बंद कर दिया गया है। इस तारे का शेष उस उर्जा द्वारा तप्त हुआ है जो कोर से लेकर संवहनी परतों के ठीक बाहर तक विकिरण द्वारा बाहर की ओर स्थानांतरित हुई है। कोर में संलयन द्वारा उत्पादित ऊर्जा को फिर उत्तरोत्तर कई परतों से होकर सौर प्रभामंडल तक यात्रा करनी होती है इसके पहले कि वह सूर्य प्रकाश अथवा कणों की गतिज ऊर्जा के रूप में अंतरिक्ष में पलायन करती है। [27][28]

कोर में प्रोटॉन-प्रोटॉन श्रृंखला दरेक सेकंड 9.2×1037 बार पाई जाती है। यह अभिक्रिया चार मुक्त प्रोटॉनों (हाइड्रोजन नाभिक) का प्रयोग करती है, यह हर सेकंड करीब 3.7×1038 प्रोटॉनों को अल्फा कणों (हीलियम नाभिक) में तब्दील करती है (सूर्य के कुल ~8.9×1056 मुक्त प्रोटॉनों में से), या लगभग 6.2× 1011 किलो प्रति सेकंड। [28] हाइड्रोजन से हीलियम संलयन के बाद हीलियम ऊर्जा के रूप में संलयित द्रव्यमान का लगभग 0.7% छोड़ती है,[29] सूर्य 42.6 करोड़ मीट्रिक टन प्रति सेकंड की द्रव्यमान-ऊर्जा रूपांतरण दर पर ऊर्जा छोड़ता है, 384.6 योटा वाट (3.846 × 1026 वाट),[1] या 9.192× 1010 टीएनटी मेगाटनEn प्रति सेकंड। राशि ऊर्जा पैदा करने में नष्ट नहीं हुई है, बल्कि यह राशि बराबर की इतनी ही ऊर्जा में तब्दील हुई है तथा ढोकर उत्सर्जित होने के लिए दूर ले जाई गई, जैसा द्रव्यमान-ऊर्जा तुल्यता अवधारणा का वर्णन हुआ है।

कोर में संलयन से शक्ति का उत्पादन सौर केंद्र से दूरी के साथ बदलता रहता है। सूर्य के केंद्र पर, सैद्धांतिक मॉडलों के आकलन में यह तकरीबन 276.5 वाट/मीटर3 होना है,[30]

जीवन चक्र

सूर्य आज सबसे अधिक स्थिर अवस्था में अपने जीवन के करीबन आधे रास्ते पर है। इसमें कई अरब वर्षों से नाटकीय रूप से कोई बदलाव नहीं हुआ है,  और आगामी कई वर्षों तक यूँ ही अपरिवर्तित बना रहेगा। हालांकि, एक स्थिर हाइड्रोजन-दहन काल के पहले का और बाद का तारा बिलकुल अलग होता है।[तथ्य वांछित]

सूर्य का जीवन चक्र

निर्माण

सूर्य एक विशाल आणविक बादल के हिस्से के ढहने से करीब 4.57 अरब वर्ष पूर्व गठित हुआ है जो अधिकांशतः हाइड्रोजन और हीलियम का बना है और शायद इन्ही ने कई अन्य तारों को बनाया है। [31] यह आयु तारकीय विकास के कंप्यूटर मॉडलो के प्रयोग और न्यूक्लियोकोस्मोक्रोनोलोजीEn के माध्यम से आकलित हुई है। [32] परिणाम प्राचीनतम सौरमंडल सामग्री की रेडियोमीट्रिक तिथि के अनुरूप है, 4.567 अरब वर्ष। [33][34] प्राचीन उल्कापातों के अध्ययन अल्पजीवी आइसोटोपो के स्थिर नाभिक के निशान दिखाते है, जैसे कि लौह-60, जो केवल विस्फोटित, अल्पजीवी तारों में निर्मित होता है। यह इंगित करता है कि वह स्थान जहां पर सूर्य बना के नजदीक एक या एक से ज्यादा सुपरनोवा अवश्य पाए जाने चाहिए। किसी नजदीकी सुपरनोवा से निकली आघात तरंग ने आणविक बादल के भीतर की गैसों को संपीडित कर सूर्य के निर्माण को शुरू किया होगा तथा कुछ क्षेत्र अपने स्वयं के गुरुत्वाकर्षण के अधीन ढहने से बने होंगे। [35] जैसे ही बादल का कोई टुकड़ा ढहा कोणीय गति के संरक्षण के कारण यह भी घुमना शुरू हुआ और बढ़ते दबाव के साथ गर्म होने लगा। बहुत बड़ी द्रव्य राशि केंद्र में केंद्रित हुई, जबकि शेष बाहर की ओर चपटकर एक डिस्क में तब्दील हुई जिनसे ग्रह व अन्य सौरमंडलीय निकाय बने। बादल के कोर के भीतर के गुरुत्व व दाब ने अत्यधिक उष्मा उत्पन्न की वैसे ही डिस्क के आसपास से और अधिक गैस जुड़ती गई, अंततः नाभिकीय संलयन को सक्रिय किया। इस प्रकार, सूर्य का जन्म हुआ।

मुख्य अनुक्रम

सूर्य की चमकत्रिज्या और प्रभावी तापमान के विकास वर्तमान सूर्य की तुलना में[36]

सूर्य अपनी मुख्य अनुक्रम अवस्था से होता हुआ करीब आधी राह पर है, जिसके दरम्यान नाभिकीय संलयन अभिक्रियाओ ने हाइड्रोजन को हीलियम में बदला। हर सेकंड, सूर्य की कोर के भीतर चालीस लाख टन से अधिक पदार्थ ऊर्जा में परिवर्तित हुआ है और न्यूट्रिनो व सौर विकिरण का निर्माण किया है। इस दर पर, सूर्य अब तक करीब 100 पृथ्वी-द्रव्यमान जितना पदार्थ ऊर्जा में परिवर्तित कर चुका है। सूर्य एक मुख्य अनुक्रम तारे के रूप में लगभग 10 अरब साल जितना खर्च करेगा। [37]

कोर हाइड्रोजन समापन के बाद

सूर्य के पास एक सुपरनोवा के रूप में विस्फोट के लिए पर्याप्त द्रव्यमान नहीं है। बावजुद यह एक लाल दानव चरण में प्रवेश करेगा। सूर्य का तकरीबन 5.4 अरब साल में एक लाल दानव बनने का पूर्वानुमान है। [38] यह आकलन हुआ है कि सूर्य संभवतः पृथ्वी समेत सौरमंडल के आंतरिक ग्रहों की वर्तमान कक्षाओं को निगल जाने जितना बड़ा हो जाएगा। [39]

वर्तमान सूर्य का आकार (फिलहाल मुख्य अनुक्रम में है) भविष्य में अपने लाल दानव चरण के दौरान अपने अनुमानित आकार की तुलना में

इससे पहले कि यह एक लाल दानव बनता है, सूर्य की चमक लगभग दोगुनी हो जाएगी और पृथ्वी शुक्र जितना आज है उससे भी अधिक गर्म हो जाएगी। एक बार कोर हाइड्रोजन समाप्त हुई, सूर्य का उपदानव चरण में विस्तार होगा और करीब आधे अरब वर्षों उपरांत आकार में धीरे धीरे दोगुना जाएगा। उसके बाद यह, आज की तुलना में दो सौ गुना बड़ा तथा दसियों हजार गुना और अधिक चमकदार होने तक, आगामी करीब आधे अरब वर्षों से ज्यादा तक और अधिक तेजी से फैलेगा। यह लाल दानव शाखा का वह चरण है, जहां पर सूर्य करीब एक अरब वर्ष बिता चुका होगा और अपने द्रव्यमान का एक तिहाई के आसपास गंवा चुका होगा। [39]

सूर्य के पास अब केवल कुछ लाख साल बचे है, पर वें बेहद प्रसंगपूर्ण है। प्रथम, कोर हीलियम चौंध में प्रचंडतापूर्वक सुलगता है और सूर्य चमक के 50 गुने के साथ, आज की तुलना में थोड़े कम तापमान के साथ, अपने हाल के आकार से 10 गुने के आसपास तक वापस सिकुड़ जाता है।

सौर अंतरिक्ष मिशन

इन्हें भी देखें: सौर वेधशाला
13 मार्च 2012 13:29, ईएसटी को सूर्य से बाहर एक बड़ा भूचुंबकीय तूफान
स्टीरियो बी के अल्ट्रावायलेट इमेजिंग कैमरे की जांच के दौरान कैद हुआ सूर्य का एक चंद्र पारगमन[40]

सूर्य के निरीक्षण के लिए रचे गए प्रथम उपग्रह नासा के पायनियर 5, 6, 7, 8 और 9 थे। यह 1959 और 1968 के बीच प्रक्षेपित हुए थे। इन यानों ने पृथ्वी और सूर्य से समान दूरी की कक्षा में सूर्य परिक्रमा करते हुए सौर वायु और सौर चुंबकीय क्षेत्र का पहला विस्तृत मापन किया। पायनियर 9 विशेष रूप से लंबे अरसे के लिए संचालित हुआ और मई 1983 तक डेटा संचारण करता रहा। [41][42]

1970 के दशक में, दो अंतरिक्ष यान हेलिओस और स्काईलैब अपोलो टेलीस्कोप माउंट En ने सौर वायु व सौर कोरोना के महत्वपूर्ण नए डेटा वैज्ञानिकों को प्रदान किए। हेलिओस 1 और 2 यान अमेरिकी-जर्मनी सहकार्य थे। इसने अंतरिक्ष यान को बुध की कक्षा के भीतर उपसौर की ओर ले जा रही कक्षा से सौर वायु का अध्ययन किया। [43] 1973 में स्कायलैब अंतरिक्ष स्टेशन नासा द्वारा प्रक्षेपित हुआ। इसने अपोलो टेलीस्कोप माउंट कहे जाने वाला एक सौर वेधशाला मॉड्यूल शामिल किया जो कि स्टेशन पर रहने वाले अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा संचालित हुआ था। [44] स्काईलैब ने पहली बार सौर संक्रमण क्षेत्र का तथा सौर कोरोना से निकली पराबैंगनी उत्सर्जन का समाधित निरीक्षण किया। [44] खोजों ने कोरोनल मास एजेक्सन के प्रथम प्रेक्षण शामिल किए, जो फिर "कोरोनल ट्रांजीएंस्ट" और फिर कोरोनल होल्स कहलाये, अब घनिष्ठ रूप से सौर वायु के साथ जुड़े होने के लिए जाना जाता है। [43]

1980 का सोलर मैक्सीमम मिशन नासा द्वारा शुरू किया गया था। यह अंतरिक्ष यान उच्च सौर गतिविधि और सौर चमक के समय के दरम्यान गामा किरणोंएक्स किरणों और सौर ज्वालाओं से निकली पराबैंगनी विकिरण के निरीक्षण के लिए रचा गया था। प्रक्षेपण के बस कुछ ही महीने बाद, हालांकि, किसी इलेक्ट्रॉनिक्स खराबी की वजह से यान जस की तस हालत में चलता रहा और उसने अगले तीन साल इसी निष्क्रिय अवस्था में बिताए। 1984 में स्पेस शटल चैलेंजर मिशन STS-41C ने उपग्रह को सुधार दिया और कक्षा में फिर से छोड़ने से पहले इसकी इलेक्ट्रॉनिक्स की मरम्मत की। जून 1989 में पृथ्वी के वायुमंडल में पुनः प्रवेश से पहले सोलर मैक्सीमम मिशन ने मरम्मत पश्चात सौर कोरोना की हजारों छवियों का अधिग्रहण किया। [45]

1991 में प्रक्षेपित, जापान के योनकोह (सौर पुंज) उपग्रह ने एक्स-रे तरंग दैर्घ्य पर सौर ज्वालाओ का अवलोकन किया। मिशन डेटा ने वैज्ञानिकों को अनेकों भिन्न प्रकार की लपटों की पहचान करने की अनुमति दी, साथ ही दिखाया कि चरम गतिविधि वाले क्षेत्रों से दूर स्थित कोरोना और अधिक गतिशील व सक्रिय थी जैसा कि पूर्व में माना हुआ था। योनकोह ने एक पूरे सौर चक्र का प्रेक्षण किया लेकिन 2001 में जब एक कुंडलाकार सूर्यग्रहण हुआ यह आपातोपयोगी दशा में चला गया जिसकी वजह से इसका सूर्य के साथ जुडाव का नुकसान हो गया। यह 2005 में वायुमंडलीय पुनः प्रवेश दौरान नष्ट हुआ था। [46]

आज दिन तक का सबसे महत्वपूर्ण सौर मिशन सोलर एंड हेलिओस्फेरिक ओब्सर्वेटरी रहा है। 2 दिसंबर1995 को शुरू हुआ यह मिशन यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी और नासा द्वारा संयुक्त रूप से बनाया गया था। [44] मूल रूप से यह दो-वर्षीय मिशन के लिए नियत हुआ था। मिशन की 2012 तक की विस्तारण मंजूरी अक्टूबर 2009 में हुई थी। [47] यह इतना उपयोगी साबित हुआ कि इसका अनुवर्ती मिशन सोलर डायनमिक्स ओब्सर्वेटरी (एसडीओ) फरवरी, 2010 में शुरू किया गया था। [48] यह पृथ्वी और सूर्य के बीच लाग्रंगियन बिंदु (जिस पर दोनों ओर का गुरुत्वीय खींचाव बराबर होता है) पर स्थापित हुआ। सोहो ने अपने प्रक्षेपण के बाद से अनेक तरंगदैर्ध्यों पर सूर्य की निरंतर छवि प्रदान की है। [44] प्रत्यक्ष सौर प्रेक्षण के अलावा, सोहो को बड़ी संख्या में धूमकेतुओं की खोज के लिए समर्थ किया गया है, इनमे से अधिकांश सूर्य के निवाले छोटे धूमकेतुEn है जो सूर्य के पास से गुजरते ही भस्म हो जाते है। [49]

अगस्त 2012 में उफनता एक सौर उदगार, नासा की सौर गतिविधि वेधशाला द्वारा लिया गया चित्र

इन सभी उपग्रहों ने सूर्य का प्रेक्षण क्रांतिवृत्त के तल से किया है, इसलिए उसके भूमध्यरेखीय क्षेत्रों मात्र के विस्तार में प्रेक्षण किए गए है। यूलिसिस यान सूर्य के ध्रुवीय क्षेत्रों के अध्ययन के लिए 1990 में प्रक्षेपित हुआ था। इसने सर्वप्रथम बृहस्पति की यात्रा की, इससे पहले इसे क्रांतिवृत्त तल के ऊपर की दूर की किसी कक्षा में बृहस्पति के गुरुत्वीय बल के सहारे ले जाया गया था। संयोगवश, यह 1994 की बृहस्पति के साथ धूमकेतु शूमेकर-लेवी 9 की टक्कर के निरीक्षण के लिए अच्छी जगह स्थापित हुआ था। एक बार यूलिसिस अपनी निर्धारित कक्षा में स्थापित हो गया, इसने उच्च सौर अक्षांशों की सौर वायु और चुंबकीय क्षेत्र शक्ति का निरीक्षण करना शुरू कर दिया और पाया कि उच्च अक्षांशों पर करीब 750 किमी/सेकंड से आगे बढ़ रही सौर वायु उम्मीद की तुलना में धीमी थी, साथ ही पाया गया कि वहां उच्च अक्षांशों से आई हुई बड़ी चुंबकीय तरंगे थी जो कि बिखरी हुई गांगेय कॉस्मिक किरणे थी। [50]

वर्णमंडल की तात्विक बहुतायतता को स्पेक्ट्रोस्कोपी अध्ययनों से अच्छी तरह जाना गया है, पर सूर्य के अंदरूनी ढांचे की समझ उतनी ही बुरी है। सौर वायु नमूना वापसी मिशन, जेनेसिस, खगोलविदों द्वारा सीधे सौर सामग्री की संरचना को मापने के लिए रचा गया था। जेनेसिस 2004 में पृथ्वी पर लौटा, पर पृथ्वी के वायुमंडल में पुनः प्रवेश पर तैनात करते वक्त पैराशूट के विफल होने से यह अकस्मात् अवतरण से क्षतिग्रस्त हो गया था। गंभीर क्षति के बावजूद, कुछ उपयोगी नमूने अंतरिक्ष यान के नमूना वापसी मॉड्यूल से बरामद किए गए हैं और विश्लेषण के दौर से गुजर रहे हैं। [51]

सोलर टेरेस्ट्रियल रिलेशंस ओब्सर्वेटरी (स्टीरियो) मिशन अक्टूबर 2006 में शुरू हुआ था। दो एक सामान अंतरिक्ष यान कक्षाओं में इस तरीके से प्रक्षेपित किए गए जो उनको (बारी बारी से) कहीं दूर आगे की ओर खींचते और धीरे धीरे पृथ्वी के पीछे गिराते। यह सूर्य और सौर घटना के त्रिविम प्रतिचित्रण करने में समर्थ है, जैसे कि कोरोनल मास एजेक्सनEn। [52][53]

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने 2015-16 तक आदित्य नामक एक 100 किलो के उपग्रह का प्रक्षेपण निर्धारित किया है। सोलर कोरोना की गतिशीलता के अध्ययन के लिए इसका मुख्य साधन एक कोरोनाग्राफEn होगा। [54]

बाल वनिता महिला आश्रम

सन्दर्भ

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क्या क्या डॉक्यूमेंट चाहिए ?घरेलु बिजली कनेक्शन लगवाने के लिए ज्यादा डॉक्युमेंट की जरुरत नहीं पड़ती है। फिर भी जो चीजें अनिवार्य है उसे आप नीचे लिस्ट में देख सकते है –नई बिजली कनेक्शन के लिए आवेदन फॉर्म लगेगा।एग्रीमेंट की कॉपी लगेगाशपथ पत्र लगेगाजिस जगह कनेक्शन लगता है उसका पेपर लगेगाराशन कार्डआधार कार्डपासपोर्ट साइज फोटोघरेलू बिजली कनेक्शन के नियमघरेलु बिजली कनेक्शन लगवाने के लिए कोई कठोर नियम नहीं बनाये गए है। लेकिन आपको इसके दिशा निर्देश के अनुसार ही कनेक्शन मिलता है। इसे आप नीचे पढ़ सकते है –नया बिजली कनेक्शन बिना मीटर के नहीं दिया जाएगा।बिजली मीटर डिजिटल रहेगा।आवेदक मूल निवासी होना चाहिए।जहाँ कनेक्शन लगवाना है उसका पेपर होना चाहिए।प्रतिमाह बिजली बिल का भुगतान करना होगा।बिजली बिल नहीं पटाने की स्थिति में विभाग कभी भी आपका कनेक्शन काट सकता है।घरेलु कनेक्शन का उपयोग व्यावसायिक कार्य हेतु नहीं किया जा सकेगा।उपभोक्ता ऑनलाइन या ऑफलाइन बिल भुगतान कर सकेंगे।घरेलू बिजली कनेक्शन के लिए आवेदन कैसे करें ?घरेलु बिजली कनेक्शन हेतु आवेदन करना बहुत आसान है। इसके लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों सुविधा 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